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सोमवार, 19 नवंबर 2018

अ =अ +अ
आ =अ +अ +अ
इ=इ +इ
ई =इ +इ +इ
उ =उ +उ
ऊ=ऊ +उ +उ
  ए =ए +ए
ऐ=ए +ए +ए
ओ=ओ+ओ
औ=अ +ओ
अं=अ +गं
 अ: =अ+हा

राम =र +आ +म
आना = अ +आ +ना
सीता =स+ई+ता
राजू =र +आ +जू
आज =अ +अ  +ज
कल =क +अ +ल
दिन =द +इ +न
रात =र +आ +त
तुम =त +उ +म
आप =अ +अ +प
हम =ह +अ +म
सब =स +अ +ब
कौन =क +औ +न
कैसे =क +ऐ  +से
तेज =त +ऐ +ज
खेर =ख +ऐ +र
खास =ख  +आ  +स
गम =ग +अ +म
गैर =ग +ऐ +र
गुम =ग +ऊ +म
घर =घ +अ  +र
चोर =च +ओ+ र
चुना =च +ऊ +ना
छूना =छ +ऊ +ना
छोर =छ +ओ+र
मोर =म +ओ+र
जन =ज + अ +न
जाति =ज +आ +ति
किस =क +इ +स
जीव =ज +इ +वा
जोर = ज +ओ+र
जोश =ज +ओ+श
झुक =झ +उ +  क
वन =व +अ +न
चना =च +अ +ना
दवा =द +अ +वा
दम =द +अ +म
दौड़ =द +ओ+ड
मरा =म +अ + रा
हार =ह +आ +र
जीत =ज +इ +त
धनु =ध +उ +न
पेड़ =प +ऐ +ड
छाव =छ +आ +व
हवा =ह +अ +वा
घास =घ +अ +स
वास =व +अ +स
मांग =म +आ +ग
जोगी =ज +ओ+गी
रोगी =र +ओ+गी
ढोल =ढ़ +ओ+ल
  अंधा =अ +अ +न +ध 
मीठा  =म +इ +ठ
मन =म +अ +न 
सर =स +अ +र  
सुख =स +उ +ख
गीला =ग +ई+ला
रवि =र +इ +व
चार =च +आ +र
आठ =अ + आ +ठ
सात =स +आ +त
तीन =त +इ +न
एक =ए +अ +क
नई =न +आ +ई
भव =भ+अ +व
भय =भ +अ +य
 डर =ड +अ +र
शोक =श +ओ+क
रछा =र +अ +छा
तिथि =त +इ +थि
पछा =प +अ +छा
ओग=अ +ओ+ग
योगी =अ +यो +गी
पैसे =प +ऐ +से
काट =क +आ +ट
वाट =व +आ +ट
मिला =म +इ +ला
देस =द +ऐ +स
रोम =र +ओ+म
फेल =फ +ऐ +ल
पास =प +अ +स
छोड़ =छ +ओ+ड
दिया =द +इ +या
हाल =ह +अ +ल
सभा =स +अ +भा
चारा =च+आ +रा
लागु =ल +आ +गु
वाद =व +अ +द
सिख =स +इ +ख
तार =त +आ +र
शंख =श +अं+ख
शव =श +अ +व
भरी =भ +अ +री
मन =म +अ +न
मादा =म +आ +दा
नर =न +अ +र
मारा =म +अ +रा
कूड़ा =क +उ +डा
जिन्दा =ज +इ +दा
फोन =फ +अ +न
फेस =फ +ए+स
वाला =व +आ +ला
दूध =द +उ +ध
चाय =च +आ +य
काफी =क +आ +फी
दही =द +ई +ही
आलू =अ +आ +लू
लालू =ल +आ +लू
मोदी =म +ओ+दी
शाम =श +आ +म
कोल =क +ओ +ल
चूक =च +उ +क
चुकी =च +उ +की
सीटी =स +इ +टी
सेना =स +ए +ना
नहीं =न +अ +ही
चीख =च +इ +ख
मेन =म +ई+न
बाद = ब +आ +द
आग =अ +आ +ग
दिया =द +ई +या
खाना =ख +आ +ना
जोश =ज +ओ+श
झुक =झ +उ +क
वन =व +अ +न
 धन =ध +अ +न
दवा =द +अ+वा
दम =द +अ +म
माग =म +आ +ग
हार =ह +आ +र
जीत =ज +इ +त
धनु =ध +अ +नु
पेड़ =प +ऐ +ड
छाव =छ +अ +व
हवा =ह +अ +वा
ढोल  =ढ +ओ+ल
गीता =ग +इ +ता
मन =म +अ +न
सर =स +अ +र
सतना =स +अ +तना
मेहर =म +इ +हर
सूरज =स +उ +  रज
सोहन =स +ओ+हन
 मोहन =म +ओ +हन
ममता =म +अ+मता
सुजीत =स+उ +जीत
सुमन =स +उ +मन
गुड़िया =ग +उ +डिया
समय =स +अ +मय
विनोद =व +इ +नोद
अपने =अ +अ +पने
सलीके =स +अ +लीके
अभाव =अ +अ +भाव
आगरा =अ +आ +गरा
रहन =र +अ +हन
सहन =स +अ +हन
कथन =क +अ +थन
किसने =क +इ +सने
 किससे =क +इ +ससे
पढ़ना=प +अ +ढ़ना
कोशिस =क +ओ +शिस
भोपाल =भ +ओ+पाल
भारत =भ +अ +रत
उसके =उ +उ +सके
गुलामी =ग +उ+लामी
टाइप =ट+अ +इप
नामक =न +अ +मक
कहानी =क +अ +हानी
दासता =द +आ +सता
दीवार =द +ई +वार
अनीता =अ +अ +नीता
सुनीता =स+उ +नीता
तालाब  =त +अ +लाब
मंदिर =म +न +दिर
रखना =र +अ +खना
अनीता =अ +अ +नीता
नाराज =न +अ +राज़
तुमने =न +उ +मने
सानिया =स +अ+निया
उनके = उ +उ +नके







मंगलवार, 17 जुलाई 2018

अध्याय one

पिछले आठ वर्षो में सूरज  स्टामेरिंग  केयर  सेंटर से जुड़े ज्यादातर लोगो ने बताया की ेस्पीजथैरेपी से उन्हें सिर्फ कुछ दिनों में या हपतों में का लाभ मिला कुछ समय बाद उनसम्भव है वैसा का हकलाना फिर से लौट आया इसमें हमें दोबाते समझ में आती है एक जैसे मलेरिया या ब्रांकाइटिस का क्योर इलाज स्टेमरिंग में नहीं दूसरी बात हकलाने में काफी लम्बे समय तक मदद की जरूरत पड़ती है और इसी लिए जरूरत है की हम अपने ीस्पीज थैरपी पिस्टखुद बने दूसरा यानि अगर आप अगले एक साल तक बाइक पर भ्रमण की योजना बना रहे
है तो  स्टार्ट  प्लान करना भी सिख ले और पंचर लगना भी क्यों की तभी तो लोग क्योर समझ रहे लोग क्योर समझ रहे है वह क्योर समझ रहे है वह सिर्फ का मजा आएगा
यहाँ एक अहम सवाल यह है की आप मदद खुद कर सकते है सूरज स्टामरिंग केयर सेंटर का अनुभव यह है की ज्यादातर लोग हकलाने वाले भारत में अपने ही प्रयासी से ठीक हुए है अधिकतर तो कभी किसी थैरपी पिस्ट के  पास गए नहीं थोड़े से जो गए कुछ नए तलाश रहे थे इनमे से ज्यादातर थैरपी की असफलता के लिए हम खुद जिम्मेदार हो कर अंदर से निराश हो जाते है सफल व्यक्ति तो क्योर हो गया मै क्यों नहीं शायद मैंने मेहनत नहीं की शायद मै अभागा हो आदि   कम ही थैरपिस्ट इस मुददे को खुल कर समझते है की हकलाने की असली वजह कोई नहीं जनता  ए क्योर भी किसी के पास नहीं है और जिसे कण्ट्रोल या मैनेजमेंट है या सिर्फ बिरले मामलो में स्पॉन्टेनियस रिकवरी जड़ से ठीक जिसे न तो कोई समझता है और और न किसी दूसरे को दे सकता है जैसे कभी कैंसर के ऐसे रोगी जिन्हे डॉक्टर जवाब दे चुके है अपने आप ही ठीक होने लगते है क्यों कोई नहीं जनता मगर ऐसे मामले बेहद कम है प्राय हकलाना कुछ महीनो के लिए शांत हो जाता है और फिर लौट आता है जीवन के महत्तपूर्ण मोड़ो पर नया कॉलेज कैम्पस इंटरव्यू नई नौकरी शादी आदि अन्य शब्दों मेऐसा कुछ करें कि हाकलना हमेशाके लिए ठीक क्योर हो जाये जाये जैसी कोई चीज नहीं है मगर मन है की मानता नहीं
सूरज स्टैमरिंग केयर सेंटर है कि हकलहाट का भला ही क्यो
न हो मगर समधान हैऔर  वह में छिपा है जहाँ हम अपने थैरेपिस्ट खुद बनते है मगर एक दूसरे की मदद से यानी एक ऐसा स्वयं सहयता समूह जहाँ हम एक दूसरे को सम्मानपूर्वक सुनते है सीखते है नए व्यवहार को भी हो   निर्भय होकर आजमाते है अगर आप किसी ऐसे समूह में जाये तो पहली बात जो बिजली की तरह मन में कौंधती है मै अकेला नहीं हु ये सब लोग भी हकलाते है इन्होने कक्षा में रोल कॉल कैसे दिया होगा नौकरी के लिए इन्टरयू कैसे दिया जाता है चलो पता करे इस तरह हम हकलाने की मानसिक्ता से ऊपर उठते है ये किसी क्योर से कम नहीं बल्कि ज्यादा है क्योकि इस प्रक्रिया में हम कुशल संचारकर्ता सामाजिक प्राणी और एक नेटवर्क के अंग बनते हैयह स्वयं सहयता समूहों की सबसे बड़ी ताकत है आप आपने जैसे ही लोगो के बिच है और उनसे कुछ भी पूछने को आजाद है और यह सब एक दोस्ती की भावना से प्रेरित है किसी शुल्क या पेशे से जुड़ा नहीं स्वयं सहयता समूह केवलस्थानीय ही नहीं बल्कि फोन व्हाट्स एप गूगल हैंग आउट स्काइप आदि पर आधारित भी हो सकते है वस्तुत आप स्वयं भी एक स्वयं सहायता समूह शुरू कर सकते है यह करने से पहले कुछ बुनियादी जानकारी व् तकनीक आपको सीखनी पड़ेगी ताकि आप आपने व् दोसरो का सार्थक मदद कर पाए प्राय हाकलने वाले समस्या को स्वीकार करने के बजाह इसको नकारना ही सुविधाजनक पाते है यह नकरना प्राय अवचेतन मन के स्तर पर होता है और इसलिए हम कई बार पूरी ईमानदारी से कहते है नहीं मै तो नहीं हकलाता मै थोड़ा सा रुकता हु कभी कभी बस एक दो शब्दों पर मुझे किसी मदद की जरूरत नहीं हैयह  नकारना हमारी तख़लीफ़ को और बड़ा देता है कॉलेज ऑफिस में इस मुददे पर खुल कर बात करने के बजाह हम सालो इसे छिपाते है और घुटते रहते है नाते रिश्तो में भी यही नकारना अन्य तमाम मानसिक तनावों का जन्म देता है इस तरह अगर देख तो समझ में आता है की हकलाने में 90 प्रतिशत से भी ज्यादा भूमिका मनौवैज्ञानिक प्रभावों की समस्या वस्तुत एक बहुत ही छोटी भूमिका मनौवैज्ञानिक प्रभावों की है और बोलने की समस्या वस्तुत एक बहुत ही छोटी भूमिका निभाती है पर प्राय हकलाने वाले व् उनके थैरपिस्ट बोलने की समस्या के पीछे पड़े रहते है और मनोवैज्ञानिक तथा सामजिक कारको पर ध्यान ही नहीं देते इसी करण परम्परागत थैरपी में थोड़ा में फयदा जो होता है वह कुछ महीनो में गायब हो जाता है और हकलाना फिर लौट आता हैइसी को डॉ शिहान ने समुद्र मै तैरते हिमखंड उपमा दी थी हकलाने में जो हमें सुनाई व दिखाई पड़ता है वह सिर्फ ऊपरी और थोड़ी सी समस्या है समस्या का कभी कभी हमे अहंकारी घमंडी बड़ा हिस्सा हमरे अवचेतन मन में छिपा रहता है और थोड़ी सी समस्या है
समस्या का बहुत बड़ा हिस्सा हमरे अवचेतन मन में छिपा रहता है और वह हमारी सोच भावनाओ मूल्यों आदि को निरन्तर प्रभावित करता है हमें पता नहीं मगर यह अवस्य हिमखंड हमें अनचाहे करियर एकाकी जीवन शैली और अपने आप में घुटते रहने के लिए मजबूर करता चला जाता है उलटे हम इसे अपनी पसंद का    नाम देकर और बड़ा देते है जीवन का स्थाई भाव बना लेते है मुझे पार्टी वर्टी पसंद नहीं है मै वकील नहीं कम्प्यूटर इंजीनियर ही बनना चाहता था मुझे कोडिंग करना आछा लगता है आदि हामरे इर्द गिर्द लोगो को कुछ भी 
अंदाजा नहीं नहीं होता की हम कैसी मन स्थिति से गुजर रहे है अपने चारो तरफ एक रूखेपन की की दीवाल
बना कर हम खुद को समझते है लोग कभी कभी हमे घमंडी अहंकारी असामजिक आदि भी समझते हैं इन सबका दोष भी प्राय दुनिया पर ही मढ़ देते है कई बार हम सचमुच एक सुपेरिओरिटी काम्पेल्स की चादर थी हम हकलाने वालो का इंटेलिजेंट होते है बेवकुफो से क्या बात करे पर सच तो ये है की ये सारी रणनीति या तरकीब किसी कम नहीं आती और देर सबेर अन्दर की तखलीफ हद से गुजर जाती है तब हम क्योर की तलाश में भटकना शुरू करते है क्या आपका जीवन कुछ कुछ ऐसा है अगर हाँ तो यह पुस्तक आपके लिए है और सूरज स्टम्मेरिंग केयर सेंटर  के स्वयं सहयता समूह है आपका मैदान खेलो खुल के और मारो मैदान क्यूंकि एस खेल के सभी नियम बदल चुके है

2 हाकलना क्या है

वर्तमान वैज्ञानिक सोच यह है की बच्चे ऐसे गुणसूत्र लेकर पैदा होते है जिनके चलते बचपन में उनके वाणी तंत्रिकाओं का विकास अन्य बच्चो से भिन्न होता है मगर कमतर नहींइस  कारण कभी नहीं जब तो दिमाग से विद्युत् सम्वेग जुबान तक पहुँचते है और कभी नहीं जब नहीं पहुँचते तब हमरा मुँह पिछली ध्वनि को ही दोहरता है रा रा रा राम इस आकस्मिक रूकावट के डर से एक ेक अन्य प्रतिक्रिया जन्म है लेति  है अज्ञानवश बच्चा समझ बैठता है की जोर लगने से फंसा हुआ शब्द बाहर निकल आएगा मगर जोर लगने पर हमरे स्वर तन्तु और बंद हो जाते है हवा कण्ठ से बहार की नहीं आती और एक छोटी समस्या बड़ी और जटिल रूप लेती चली जाती है इस क्रम में बड़े होते बच्चे के मनोविज्ञान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ते है दुसरो का टोकना व्यर्थ सुझाव देना आराम से बोलो मजाक बनना हैरान होना आदि बच्चे के मन में हाकलना का प्रति नफरत डर और चिंता बैठ जाती है आपने परिवार या दोस्तों की तख़लीफ़ पहुंचाई है मैं कितना  अभागा हूँ आदि  बड़े होते होते ये
भावनाएं डर शर











शुक्रवार, 30 मार्च 2018

शतुरमुर्ग Vs हकलाहट


शतुरमुर्ग की सोच .....
हम सबने शतुरमुर्ग की कहानी सुनी है। .. रेगिस्तान में जब कभी शतुरमुर्ग को खतरा महसूस होता है तो वो अपना सिर रेत के अंदर छिपा लेता है। .. ऐसा करने से उसे लगता है कि जैसे वो कुछ देख नहीं पा रहा है , वैसे ही दूसरे भी उसे देख नहीं पा रहे हैं और वो सुरक्षित है। ...हालाँकि ऐसा होता नहीं है। ... सभी को शतुरमुर्ग दिख रहा है - ये बात शतुरमुर्ग मानने को तैयार नहीं होता है। ...
हमारी हकलाहट भी बहुत कुछ शतुरमुर्ग की सोच की तरह है। ... ऐसा उन हकलाने वालों के साथ अक्सर होता है जो ये सोचते हैं कि उन्हें बहुत ज्यादा हकलाहट नहीं होती है, और वे उसे छिपा सकते हैं । कई युवा हकलाने वाले लोग इस बोझ के नीचे दबे हुए हैं कि अपने परिवार के सदस्यों , इष्ट-मित्रों को कैसे समझायें कि वे हकलाते हैं। .... कुछ लोगों का कहना है की उन्हें पता है कि वे हकलाते हैं, पर उनके परिवार-जन और मित्र ये नहीं मानते। ...
उनकी ये धारना सच भी हो सकती है। लेकिन अक्सर हम पाएंगे कि हम अपने जीवन में जिन लोगों के संपर्क में ज़्यादातर आते हैं , उन्हें ये पता है कि हम हकलाते हैं। .. ऐसा हो सकता है कि ये लोग हकलाहट के बारे में हमसे बात करने में सहज महसूस नहीं करते हों , या उन्हें ये चिंता हो की हमें बुरा लग सकता है। ...
तो अब समय आ गया है की हम अपने सिर को रेत से बाहर निकालें। अपने करीबी लोगों से खुल कर अपनी हकलाहट के विषय में चर्चा करें। उन्हें ये बतलायें की हकलाहट हमारे जीवन में बहुत छोटी चीज़ नहीं है। .. उन्हें ये समझाएं कि हमारे जीवन में हकलाहट के कारण हमें किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यदि हम हकलाहट को स्वीकार कर लें , हमारे परिवार-जन हमारी हकलाहट को स्वीकार कर लें - तो हमें काफी मदद मिल सकती है। हम इस विषय पर खुल कर बात कर सकते हैं और हमारी घुटन कम हो सकती है। हम अपनी हकलाहट से भागने की जगह उसके कुशल-प्रबंधन पर ध्यान दे पाएंगे और अपनी संचार-कौशल को बेहतर बना पाएंगे।