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सोमवार, 17 जून 2019

आप रोज़ एक नकली भूमिका निभा रहे है ?

यदि एक हकलानेवाले व्यक्ति के रूप में आपके अनुभव मेरे जैसे है, तो आपने जरुर जीवन का एक बड़ा हिस्सा बिताया होगा, इस तरह के सुझाव सुनते सुनते : "एक गहरी साँस लो", "पहले सोच लो क्या कहना है, फिर बोलो" - और शायद यह भी: "बात करने के लिए अपने मुंह में एक कंकड़, या सुपाड़ी डाल लो". मुमकिन है की आपने अब तक सीख लिया हो कि इन बातों से कोई मदद नहीं मिलती - उलटे ये आपकी समस्या को बदतर ही बनाते हैं ।
ये 'प्रसिद्ध' उपचार क्यों असफल हैं, इसका एक अच्छा कारण है: ये सभी हकलाने को दबाते हैं, छुपाते हैं, आपको कुछ कृत्रिम (आर्टिफीसियल) करने को मजबूर करते हैं । और, इस तरह आप हकलाने से जितना बचने का प्रयास करते है - जितना उसे दबाते है- आप उतना ही ज्यादा हकलाते हैं ।

आपका हकलाना एक हिमशैल की तरह है. सतह से ऊपर, लोगों को क्या दिखता और सुनाई पड़ता है - वह वास्तव में समस्या का बहुत छोटा हिस्सा है. जो वास्तव में बड़ी समस्या है, वह है - शर्म, डर, ग्लानि, तथा वह सभी अन्य नकारात्मक भावनाएं जो हमारे अवचेतन मन में बैठ जाती है, जब हम एक साधारण वाक्य बोलने की कोशिश करते हैं और नहीं बोल पाते ।

शायद मेरी तरह आप भी सारी जिंदगी इस हिमखंड को छुपाने में लगे रहे है? आपने भी एक धाराप्रवाह वक्ता होने का दिखावा निरंतर किया है? ब्लॉक को छुपाने की जी तोड़ कोशिश? एक ऐसा प्रयास जो अकसर आपके और आपके श्रोता के लिए तकलीफदेह रहा है ? आप इस जाली भूमिका से  थक गए है? यहां तक ​​कि, जब ये तरकीबे काम करती है तब भी आप बहुत खुश नहीं होते - और जब ये असफल होती है तब तो आप को निश्चित रूप से बेहद बुरा लगता है ।  फिर भी आप शायद यह नहीं जानते कि यह सारा छुपाना और दबाना ही आपके हकलाने के दुष्चक्र को निरंतर जारी रखता है ।

मनोवैज्ञानिक और भाषण प्रयोगशालाओं में हमें सबूत मिले है कि हकलाना एक संघर्ष है, एक विशेष संघर्ष - आगे बढ़ना और डर से पीछे हटना -. आप बोलना चाहते हैं, लेकिन डर के मारे चुप भी रहना चाहते है । यही उहापोह, यही अनिश्चितता, हकलाने की जड़ में छुपी है । आपके डर के कई स्रोत और स्तर है ।  सबसे ऊपर हकलाने का डर और दबाव ही है और शायद यह उन कारकों का परिणाम है जिनकी वज़ह से आपका हकलाना पहली बार शुरू हुआ ।


हकलाने का डर पैदा होता है शर्म और घृणा से- आप अपने बोलने के तरीके से घृणा करते है और इस तरह एक दुश्चक्र शुरू होता है और जारी रहता है । यह डर और शर्म इस बात पर आधारित है कि आप रोज़ एक नकली भूमिका निभा रहे है: कौन मै ? नही मै तो नही हकलाता ..। 


आप अगर हिम्मत करे तो इस डर के बारे में कुछ कर सकते हैं । आप अपने हकलाने के बारे में थोडा पारदर्शी हो सकते है. आप आगे बढ़ कर जो चाहे बोल सकते हैं, हकलाने के बावजूद । डर पर विजय पा कर आप अपने सच्चे स्वरुप को पेश कर सकते है और नित्य प्रति "जो नही है वह दिखने की" मज़बूरी से आजाद हो सकते है. इस तरह आप उस असुरक्षा के भाव से मुक्त हो जायेंगे जो इस तरह के 'अभिनय' से निरंतर पैदा होती रहती है । आप सतह के नीचे हिमशैल के छिपे हिस्से को कम कर पायेंगे । और यह हिस्सा आपकी समस्या का वह हिस्सा है जिसे सर्वप्रथम ठीक किये जाने की सख्त जरुरत है । बस आप जैसे है वैसा स्वयं को पेश करे और अपने हकलाने के बारे में खुल कर बात करे- मात्र इतना ही आपको तनाव से बेहद राहत पहुचायेगा।

यहाँ दो महत्त्वपूर्ण मगर रहस्यमय सिद्धांत हैं जो अगर आप समझ लें तो वे आपको बहुत लाभ पहुंचा सकते हैं -

    प्रथम - आपका हकलाना आपका कोई नुक्सान नहीं करता, वह आपका दुश्मन नहीं है, सच पूछो तो । दूसरे - फ़्लुएन्सी आपके किसी काम की नही । यानी हकलाना न आपका दुश्मन है, न फ़्लुएन्सी आपकी दोस्त - सच्चे अर्थों में । इनसे न तो कोई काम बिगड़ता है और न ही बनता है। न तो हकलाने के लिए आपको शर्मिन्दा होने की जरुरत है और न ही अपनी फ़्लुएन्सी पर गर्व करने की। 
   
अधिकांश हकलाने वाले, जब ब्लॉक में होते हैं, तो वे बेहद संघर्ष करते हैं, जोर लगाते हैं - क्योकि उन्हें ब्लॉक एक बड़ी और व्यक्तिगत विफलता जैसा प्रतीत होता है । इस डर से वे हर समय ज्यादा चौकन्ने रहते है और संघर्ष करते हैं । जितना वे संघर्ष करते हैं- हकलाना उतना ही बढ़ता है | वे खुद को निरंतर एक दुष्चक्र में धकेलते चले जाते है । यह दुष्चक्र कुछ इस प्रकार है -हकलाहट -> डर -> घृणा, शर्म  -> छुपाने की प्रवृत्ति  -> अपराधबोध

हकलाने का अनुभव एक नितांत अकेलेपन का अनुभव है। आप शायद ज्यादा हकलाने वालों से मिले नहीं हैं - और कुछ जिनसे आप मिले भी होंगे, उनसे आपने प्लेग की तरह अपना दामन बचाया होगा ! जैसे आप काफ़ी हद तक अपने हकलाने को छिपा लेते हैं- वैसा ही दूसरे भी कर रहे है और इस लिए मुमकिन है आप को एहसास भी न हो कि दुनिया की १% आबादी हकलाती है - खुद अमेरिका में लगभग १५ लाख लोग हकलाते हैं ! विश्व में कई प्रसिद्ध लोगों को यही समस्या थी : मूसा, देमोस्थेनीज, चार्ल्स लैम्ब और इंग्लैंड के चार्ल्स प्रथम आदि । अभी हाल में, इंग्लैंड के जॉर्ज पंचम, सोमरसेट मॉम, मर्लिन मुनरो और टीवी व्यक्तित्व गैरी मूर और जैक पार जैसे व्यक्ति भी जीवन में किसी समय हकलाते थे। अपने बोलने की समस्या में, आप न तो कोई अजूबा है और ना ही उतने अकेले जितना आपने सोचा था ।

प्रत्येक हकलाने वाले वयस्क की अपनी एक व्यक्तिगत शैली है, जिसमे बहुत सी "अवोएडेन्स" (छिपाने की प्रवृत्ति) और ट्रिक्स शामिल हैं - पर यह सभी एक गहरे भय पर आधारित हैं और इन्होने एक बैसाखी का रूप ले लिया है, जिसके बगैर आपका काम बिलकुल नही चलता। चाहे "मै हकलाता हूं" कहें या "मै रुकता हूं" - समस्या एक ही है - एक गहरे डर पर आधारित। हकलाना या ना हकलाना आपके बस में नही है- मगर आप कैसे हकलाते हैं- यह जरूर आपके हाथ में है । और यह बहुत महत्त्वपूर्ण भी है ! बहुत से हकलाने वालों ने, और खुद मैंने भी, बगैर संघर्ष, बगैर तनाव के आराम से हकलाते हुए अपनी बात कहते चले जाने की कला सीख ली है । इसके लिए जरुरी है - पारदर्शिता : जैसे हैं वैसा ही अपने को पेश करना, अपने छिपे हिमखंड (डर व शर्म) को उजागर करना, सामने वाले की आँखों में शांत मन से देखना, जब ब्लॉक में हो तो संघर्ष न करना, एक बार शुरू करने पर अपनी बात पूरी करना, शब्दों और स्थितियों से मुह न चुराना - और सर्वोपरि, हकलाते हुए भी अपनी बात कहने का साहस रखना । इलाज की किसी भी रणनीति में इन बातो का बेहद महत्त्व है । 

हां, आप हकलाते हुए अपनी इस समस्या से बाहर निकल सकते हैं !! तो जब तक आप शर्म, घृणा और अपराध के साथ अपने हकलाने को देखते रहेंगे - आप बोलने की प्रक्रिया से भी डरते रहेंगे।  यह भय, "अवोएडेन्स" और अपराधबोध आपके हकलाने को और अधिक बढ़ा देगा। बहुत से वयस्क अपनी बहुत मदद कर सकते है बस अगर वे अपने डर और नफरत को कम कर पाते।

क्योंकि आप हकलाते है इसका मतलब यह नहीं है कि आप अन्य व्यक्ति से ज्यादा maladjusted या न्युरोटिक हैं. व्यक्तित्व अध्ययन के आधुनिक तरीकों का उपयोग कर अनुसंधान से साबित हुआ है की हकलाने वालो का कोई विशिष्ट व्यक्तित्व पैटर्न नही है । आप हर मायने में "नॉर्मल" हैं। अगर आप इस बात को समझ ले और इस पर यकीन करें तो मुमकिन है की आप स्वयं को बेहतर स्वीकार कर सके और आपका जीवन ज्यादा खुला और आरामदेह बन सके।

यदि आप इस देश (अमेरिका) में पंद्रह लाख हकलाने वालो के समान हैं, तो चिकित्सीय उपचार आप के लिए उपलब्ध नहीं होगा! आप को सब कुछ अपने दम पर ही करना होगा - उन विचारों और स्रोतों का उपयोग करना होगा जो आपको उपलब्ध हैं।  मुद्दा यह नहीं है कि आत्म उपचार वांछनीय है या नहीं। मुद्दा यह है कि सही क्लिनिकल उपचार आपको मिलेगा या नही। ज्यादातर मामलों में क्लिनिकल उपचार (स्पीच थिरेपी) से आप बेहतर व्यवस्थित प्रगति कर पाते है - विशेष रूप से अगर आप उन लोगो में हैं, जो हकलाने के साथ साथ, व्यक्तित्व और भावनात्मक समस्याओं से भी जूझ रहे हैं. एक मायने में, हर हकलाने वाला अपना इलाज खुद करने की कोशिश करता है। मगर उसे एक तरीके, एक रणनीति की जरुरत है। कुछ व्यक्तियों को, सही दिशा मिलने पर वे खुद ब खुद काफी प्रगति कर पाते हैं. दूसरों को संभवतः और अधिक व्यापक और औपचारिक स्पीच थिरेपी या मनोचिकित्सा की जरूरत पड़ती है.

हकलाने वालों को जो बहुतायत से सुझाव दिए जाते हैं उनसे कहीं ज्यादा व्यावहारिक और सहायतापूर्ण विचार मैंने नीचे रखे है:इसे आप इस तरह लें - अगली बार जब आप किसी दुकान में जायें या टेलीफोन पर बात करें - तो अपना कलेजा सख्त करें और देखें कि आप अपने डर से कितना जूझ सकते हैं। देखें क्या  आप अपने ब्लॉक को शांति से स्वीकार कर पाते हैं ? ताकि आपका श्रोता भी आपके ब्लॉको को शान्ति से स्वीकार कर सके? अन्य सभी परिस्थितियों में देखे कि क्या आप खुले तौर पर, कुछ समय के लिए ही सही, एक हकलाने वाले इंसान की भूमिका स्वीकार कर पाते हैं? क्या आप अपने श्रोता को यकीन दिला पाते हैं कि हकलाने के बावजूद आप अपनी बात उसे समझाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं? कि आप हकालने को अपने और उसके बीच संवाद में आड़े न आने देंगे?

क्या आप उस हद तक जा सकते हैं जहां आपके मन में अपने हकलाने को छिपाने, दबाने की प्रवृत्ति लेशमात्र भी न बचे, भले ही मौका कितना ही "महत्त्वपूर्ण" क्यों न हो? और जब हकलायें तो ऐसे हकलायें, जैसे कुछ हुआ ही नही? क्या आप परफेक्ट बोलने की जिद छोड़ सकते हैं? सच तो यह है की अगर आप हकलाते हुए वयस्क हुए हैं तो संभावना है कि किसी न किसी रूप में, कमोबेस हकलाना आपके साथ रहेगा- मगर जैसे हकले आप इस समय है, वैसा ही हमेशा बने रहने की कोई मज़बूरी नही है । आप थोड़े से प्रयास से अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं। 
 उम्र महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन भावनात्मक परिपक्वता जरूर महत्वपूर्ण है. हमारे क्लिनिकल रिकॉर्ड में  सबसे सफल केस एक 78 साल आयु के सेवानिवृत्त बैंड मास्टर का है। उन्होंने कसम खाई कि  मरने से पहले मैं अपने हकलाने पर विजय प्राप्त करूँगा और उन्होंने ऐसा ही किया।

सारांश में देखे तो प्रश्न सिर्फ यह हैं, कि आप अपने हिमशैल को सतह से कितना ऊपर ला सकते हैं? जब आप उस मुकाम पर पहुँच जायें जहां आप अपने श्रोता से कुछ भी नहीं छुपा रहे हैं, तो आप पायेंगे कि  समस्या नाम की कोई चीज़ आपके पास बची नही है। हकलाते हुए आप इस समस्या से बाहर आ सकते हैं, बशर्ते आप में हिम्मत और खुलापन हो।
From
SURAJ STAMMERING CARE CENTRE
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रविवार, 5 मई 2019

practical

 बोध कथा स्वीकार्यता का एक दूसरा पहल ;कुछ लोग कहते है ;मैंने हकलाने को स्वीकार [एक्सेप्ट ]कर लिया अब मुझे और क्या करना है कुछ नहीं पर सच तो यह है कि शब्दो में स्वीकार करना सिर्फ पहली सीढ़ी है असली सफर इसके बाद शुरू होता है यह बोध कथा यही समझाती है                                                                           एक बार         एक आदमी लॉटरी जीत कर रातोरात बेहद अमीर बन गया उसके मन में पहली बात आई ,मै नौकरी कियु करू मै तो दुसरो को नौकरी दे सकता हु उसने इस्तीफ़ा दे दिया दूसरे दिन उसके मन में आया इतनी सुबह कियु उठ रहा हु कौन सा ऑफिस पहुंचना है कुछ दिन बाद उसे लगा की दाढ़ी बनाना बेकार है क्योंकि उसे कौन सा बॉस से मिलना है 

सोमवार, 19 नवंबर 2018

अ =अ +अ
आ =अ +अ +अ
इ=इ +इ
ई =इ +इ +इ
उ =उ +उ
ऊ=ऊ +उ +उ
  ए =ए +ए
ऐ=ए +ए +ए
ओ=ओ+ओ
औ=अ +ओ
अं=अ +गं
 अ: =अ+हा

राम =र +आ +म
आना = अ +आ +ना
सीता =स+ई+ता
राजू =र +आ +जू
आज =अ +अ  +ज
कल =क +अ +ल
दिन =द +इ +न
रात =र +आ +त
तुम =त +उ +म
आप =अ +अ +प
हम =ह +अ +म
सब =स +अ +ब
कौन =क +औ +न
कैसे =क +ऐ  +से
तेज =त +ऐ +ज
खेर =ख +ऐ +र
खास =ख  +आ  +स
गम =ग +अ +म
गैर =ग +ऐ +र
गुम =ग +ऊ +म
घर =घ +अ  +र
चोर =च +ओ+ र
चुना =च +ऊ +ना
छूना =छ +ऊ +ना
छोर =छ +ओ+र
मोर =म +ओ+र
जन =ज + अ +न
जाति =ज +आ +ति
किस =क +इ +स
जीव =ज +इ +वा
जोर = ज +ओ+र
जोश =ज +ओ+श
झुक =झ +उ +  क
वन =व +अ +न
चना =च +अ +ना
दवा =द +अ +वा
दम =द +अ +म
दौड़ =द +ओ+ड
मरा =म +अ + रा
हार =ह +आ +र
जीत =ज +इ +त
धनु =ध +उ +न
पेड़ =प +ऐ +ड
छाव =छ +आ +व
हवा =ह +अ +वा
घास =घ +अ +स
वास =व +अ +स
मांग =म +आ +ग
जोगी =ज +ओ+गी
रोगी =र +ओ+गी
ढोल =ढ़ +ओ+ल
  अंधा =अ +अ +न +ध 
मीठा  =म +इ +ठ
मन =म +अ +न 
सर =स +अ +र  
सुख =स +उ +ख
गीला =ग +ई+ला
रवि =र +इ +व
चार =च +आ +र
आठ =अ + आ +ठ
सात =स +आ +त
तीन =त +इ +न
एक =ए +अ +क
नई =न +आ +ई
भव =भ+अ +व
भय =भ +अ +य
 डर =ड +अ +र
शोक =श +ओ+क
रछा =र +अ +छा
तिथि =त +इ +थि
पछा =प +अ +छा
ओग=अ +ओ+ग
योगी =अ +यो +गी
पैसे =प +ऐ +से
काट =क +आ +ट
वाट =व +आ +ट
मिला =म +इ +ला
देस =द +ऐ +स
रोम =र +ओ+म
फेल =फ +ऐ +ल
पास =प +अ +स
छोड़ =छ +ओ+ड
दिया =द +इ +या
हाल =ह +अ +ल
सभा =स +अ +भा
चारा =च+आ +रा
लागु =ल +आ +गु
वाद =व +अ +द
सिख =स +इ +ख
तार =त +आ +र
शंख =श +अं+ख
शव =श +अ +व
भरी =भ +अ +री
मन =म +अ +न
मादा =म +आ +दा
नर =न +अ +र
मारा =म +अ +रा
कूड़ा =क +उ +डा
जिन्दा =ज +इ +दा
फोन =फ +अ +न
फेस =फ +ए+स
वाला =व +आ +ला
दूध =द +उ +ध
चाय =च +आ +य
काफी =क +आ +फी
दही =द +ई +ही
आलू =अ +आ +लू
लालू =ल +आ +लू
मोदी =म +ओ+दी
शाम =श +आ +म
कोल =क +ओ +ल
चूक =च +उ +क
चुकी =च +उ +की
सीटी =स +इ +टी
सेना =स +ए +ना
नहीं =न +अ +ही
चीख =च +इ +ख
मेन =म +ई+न
बाद = ब +आ +द
आग =अ +आ +ग
दिया =द +ई +या
खाना =ख +आ +ना
जोश =ज +ओ+श
झुक =झ +उ +क
वन =व +अ +न
 धन =ध +अ +न
दवा =द +अ+वा
दम =द +अ +म
माग =म +आ +ग
हार =ह +आ +र
जीत =ज +इ +त
धनु =ध +अ +नु
पेड़ =प +ऐ +ड
छाव =छ +अ +व
हवा =ह +अ +वा
ढोल  =ढ +ओ+ल
गीता =ग +इ +ता
मन =म +अ +न
सर =स +अ +र
सतना =स +अ +तना
मेहर =म +इ +हर
सूरज =स +उ +  रज
सोहन =स +ओ+हन
 मोहन =म +ओ +हन
ममता =म +अ+मता
सुजीत =स+उ +जीत
सुमन =स +उ +मन
गुड़िया =ग +उ +डिया
समय =स +अ +मय
विनोद =व +इ +नोद
अपने =अ +अ +पने
सलीके =स +अ +लीके
अभाव =अ +अ +भाव
आगरा =अ +आ +गरा
रहन =र +अ +हन
सहन =स +अ +हन
कथन =क +अ +थन
किसने =क +इ +सने
 किससे =क +इ +ससे
पढ़ना=प +अ +ढ़ना
कोशिस =क +ओ +शिस
भोपाल =भ +ओ+पाल
भारत =भ +अ +रत
उसके =उ +उ +सके
गुलामी =ग +उ+लामी
टाइप =ट+अ +इप
नामक =न +अ +मक
कहानी =क +अ +हानी
दासता =द +आ +सता
दीवार =द +ई +वार
अनीता =अ +अ +नीता
सुनीता =स+उ +नीता
तालाब  =त +अ +लाब
मंदिर =म +न +दिर
रखना =र +अ +खना
अनीता =अ +अ +नीता
नाराज =न +अ +राज़
तुमने =न +उ +मने
सानिया =स +अ+निया
उनके = उ +उ +नके







मंगलवार, 17 जुलाई 2018

अध्याय one

पिछले आठ वर्षो में सूरज  स्टामेरिंग  केयर  सेंटर से जुड़े ज्यादातर लोगो ने बताया की ेस्पीजथैरेपी से उन्हें सिर्फ कुछ दिनों में या हपतों में का लाभ मिला कुछ समय बाद उनसम्भव है वैसा का हकलाना फिर से लौट आया इसमें हमें दोबाते समझ में आती है एक जैसे मलेरिया या ब्रांकाइटिस का क्योर इलाज स्टेमरिंग में नहीं दूसरी बात हकलाने में काफी लम्बे समय तक मदद की जरूरत पड़ती है और इसी लिए जरूरत है की हम अपने ीस्पीज थैरपी पिस्टखुद बने दूसरा यानि अगर आप अगले एक साल तक बाइक पर भ्रमण की योजना बना रहे
है तो  स्टार्ट  प्लान करना भी सिख ले और पंचर लगना भी क्यों की तभी तो लोग क्योर समझ रहे लोग क्योर समझ रहे है वह क्योर समझ रहे है वह सिर्फ का मजा आएगा
यहाँ एक अहम सवाल यह है की आप मदद खुद कर सकते है सूरज स्टामरिंग केयर सेंटर का अनुभव यह है की ज्यादातर लोग हकलाने वाले भारत में अपने ही प्रयासी से ठीक हुए है अधिकतर तो कभी किसी थैरपी पिस्ट के  पास गए नहीं थोड़े से जो गए कुछ नए तलाश रहे थे इनमे से ज्यादातर थैरपी की असफलता के लिए हम खुद जिम्मेदार हो कर अंदर से निराश हो जाते है सफल व्यक्ति तो क्योर हो गया मै क्यों नहीं शायद मैंने मेहनत नहीं की शायद मै अभागा हो आदि   कम ही थैरपिस्ट इस मुददे को खुल कर समझते है की हकलाने की असली वजह कोई नहीं जनता  ए क्योर भी किसी के पास नहीं है और जिसे कण्ट्रोल या मैनेजमेंट है या सिर्फ बिरले मामलो में स्पॉन्टेनियस रिकवरी जड़ से ठीक जिसे न तो कोई समझता है और और न किसी दूसरे को दे सकता है जैसे कभी कैंसर के ऐसे रोगी जिन्हे डॉक्टर जवाब दे चुके है अपने आप ही ठीक होने लगते है क्यों कोई नहीं जनता मगर ऐसे मामले बेहद कम है प्राय हकलाना कुछ महीनो के लिए शांत हो जाता है और फिर लौट आता है जीवन के महत्तपूर्ण मोड़ो पर नया कॉलेज कैम्पस इंटरव्यू नई नौकरी शादी आदि अन्य शब्दों मेऐसा कुछ करें कि हाकलना हमेशाके लिए ठीक क्योर हो जाये जाये जैसी कोई चीज नहीं है मगर मन है की मानता नहीं
सूरज स्टैमरिंग केयर सेंटर है कि हकलहाट का भला ही क्यो
न हो मगर समधान हैऔर  वह में छिपा है जहाँ हम अपने थैरेपिस्ट खुद बनते है मगर एक दूसरे की मदद से यानी एक ऐसा स्वयं सहयता समूह जहाँ हम एक दूसरे को सम्मानपूर्वक सुनते है सीखते है नए व्यवहार को भी हो   निर्भय होकर आजमाते है अगर आप किसी ऐसे समूह में जाये तो पहली बात जो बिजली की तरह मन में कौंधती है मै अकेला नहीं हु ये सब लोग भी हकलाते है इन्होने कक्षा में रोल कॉल कैसे दिया होगा नौकरी के लिए इन्टरयू कैसे दिया जाता है चलो पता करे इस तरह हम हकलाने की मानसिक्ता से ऊपर उठते है ये किसी क्योर से कम नहीं बल्कि ज्यादा है क्योकि इस प्रक्रिया में हम कुशल संचारकर्ता सामाजिक प्राणी और एक नेटवर्क के अंग बनते हैयह स्वयं सहयता समूहों की सबसे बड़ी ताकत है आप आपने जैसे ही लोगो के बिच है और उनसे कुछ भी पूछने को आजाद है और यह सब एक दोस्ती की भावना से प्रेरित है किसी शुल्क या पेशे से जुड़ा नहीं स्वयं सहयता समूह केवलस्थानीय ही नहीं बल्कि फोन व्हाट्स एप गूगल हैंग आउट स्काइप आदि पर आधारित भी हो सकते है वस्तुत आप स्वयं भी एक स्वयं सहायता समूह शुरू कर सकते है यह करने से पहले कुछ बुनियादी जानकारी व् तकनीक आपको सीखनी पड़ेगी ताकि आप आपने व् दोसरो का सार्थक मदद कर पाए प्राय हाकलने वाले समस्या को स्वीकार करने के बजाह इसको नकारना ही सुविधाजनक पाते है यह नकरना प्राय अवचेतन मन के स्तर पर होता है और इसलिए हम कई बार पूरी ईमानदारी से कहते है नहीं मै तो नहीं हकलाता मै थोड़ा सा रुकता हु कभी कभी बस एक दो शब्दों पर मुझे किसी मदद की जरूरत नहीं हैयह  नकारना हमारी तख़लीफ़ को और बड़ा देता है कॉलेज ऑफिस में इस मुददे पर खुल कर बात करने के बजाह हम सालो इसे छिपाते है और घुटते रहते है नाते रिश्तो में भी यही नकारना अन्य तमाम मानसिक तनावों का जन्म देता है इस तरह अगर देख तो समझ में आता है की हकलाने में 90 प्रतिशत से भी ज्यादा भूमिका मनौवैज्ञानिक प्रभावों की समस्या वस्तुत एक बहुत ही छोटी भूमिका मनौवैज्ञानिक प्रभावों की है और बोलने की समस्या वस्तुत एक बहुत ही छोटी भूमिका निभाती है पर प्राय हकलाने वाले व् उनके थैरपिस्ट बोलने की समस्या के पीछे पड़े रहते है और मनोवैज्ञानिक तथा सामजिक कारको पर ध्यान ही नहीं देते इसी करण परम्परागत थैरपी में थोड़ा में फयदा जो होता है वह कुछ महीनो में गायब हो जाता है और हकलाना फिर लौट आता हैइसी को डॉ शिहान ने समुद्र मै तैरते हिमखंड उपमा दी थी हकलाने में जो हमें सुनाई व दिखाई पड़ता है वह सिर्फ ऊपरी और थोड़ी सी समस्या है समस्या का कभी कभी हमे अहंकारी घमंडी बड़ा हिस्सा हमरे अवचेतन मन में छिपा रहता है और थोड़ी सी समस्या है
समस्या का बहुत बड़ा हिस्सा हमरे अवचेतन मन में छिपा रहता है और वह हमारी सोच भावनाओ मूल्यों आदि को निरन्तर प्रभावित करता है हमें पता नहीं मगर यह अवस्य हिमखंड हमें अनचाहे करियर एकाकी जीवन शैली और अपने आप में घुटते रहने के लिए मजबूर करता चला जाता है उलटे हम इसे अपनी पसंद का    नाम देकर और बड़ा देते है जीवन का स्थाई भाव बना लेते है मुझे पार्टी वर्टी पसंद नहीं है मै वकील नहीं कम्प्यूटर इंजीनियर ही बनना चाहता था मुझे कोडिंग करना आछा लगता है आदि हामरे इर्द गिर्द लोगो को कुछ भी 
अंदाजा नहीं नहीं होता की हम कैसी मन स्थिति से गुजर रहे है अपने चारो तरफ एक रूखेपन की की दीवाल
बना कर हम खुद को समझते है लोग कभी कभी हमे घमंडी अहंकारी असामजिक आदि भी समझते हैं इन सबका दोष भी प्राय दुनिया पर ही मढ़ देते है कई बार हम सचमुच एक सुपेरिओरिटी काम्पेल्स की चादर थी हम हकलाने वालो का इंटेलिजेंट होते है बेवकुफो से क्या बात करे पर सच तो ये है की ये सारी रणनीति या तरकीब किसी कम नहीं आती और देर सबेर अन्दर की तखलीफ हद से गुजर जाती है तब हम क्योर की तलाश में भटकना शुरू करते है क्या आपका जीवन कुछ कुछ ऐसा है अगर हाँ तो यह पुस्तक आपके लिए है और सूरज स्टम्मेरिंग केयर सेंटर  के स्वयं सहयता समूह है आपका मैदान खेलो खुल के और मारो मैदान क्यूंकि एस खेल के सभी नियम बदल चुके है

2 हाकलना क्या है

वर्तमान वैज्ञानिक सोच यह है की बच्चे ऐसे गुणसूत्र लेकर पैदा होते है जिनके चलते बचपन में उनके वाणी तंत्रिकाओं का विकास अन्य बच्चो से भिन्न होता है मगर कमतर नहींइस  कारण कभी नहीं जब तो दिमाग से विद्युत् सम्वेग जुबान तक पहुँचते है और कभी नहीं जब नहीं पहुँचते तब हमरा मुँह पिछली ध्वनि को ही दोहरता है रा रा रा राम इस आकस्मिक रूकावट के डर से एक ेक अन्य प्रतिक्रिया जन्म है लेति  है अज्ञानवश बच्चा समझ बैठता है की जोर लगने से फंसा हुआ शब्द बाहर निकल आएगा मगर जोर लगने पर हमरे स्वर तन्तु और बंद हो जाते है हवा कण्ठ से बहार की नहीं आती और एक छोटी समस्या बड़ी और जटिल रूप लेती चली जाती है इस क्रम में बड़े होते बच्चे के मनोविज्ञान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ते है दुसरो का टोकना व्यर्थ सुझाव देना आराम से बोलो मजाक बनना हैरान होना आदि बच्चे के मन में हाकलना का प्रति नफरत डर और चिंता बैठ जाती है आपने परिवार या दोस्तों की तख़लीफ़ पहुंचाई है मैं कितना  अभागा हूँ आदि  बड़े होते होते ये
भावनाएं डर शर











शुक्रवार, 30 मार्च 2018

शतुरमुर्ग Vs हकलाहट


शतुरमुर्ग की सोच .....
हम सबने शतुरमुर्ग की कहानी सुनी है। .. रेगिस्तान में जब कभी शतुरमुर्ग को खतरा महसूस होता है तो वो अपना सिर रेत के अंदर छिपा लेता है। .. ऐसा करने से उसे लगता है कि जैसे वो कुछ देख नहीं पा रहा है , वैसे ही दूसरे भी उसे देख नहीं पा रहे हैं और वो सुरक्षित है। ...हालाँकि ऐसा होता नहीं है। ... सभी को शतुरमुर्ग दिख रहा है - ये बात शतुरमुर्ग मानने को तैयार नहीं होता है। ...
हमारी हकलाहट भी बहुत कुछ शतुरमुर्ग की सोच की तरह है। ... ऐसा उन हकलाने वालों के साथ अक्सर होता है जो ये सोचते हैं कि उन्हें बहुत ज्यादा हकलाहट नहीं होती है, और वे उसे छिपा सकते हैं । कई युवा हकलाने वाले लोग इस बोझ के नीचे दबे हुए हैं कि अपने परिवार के सदस्यों , इष्ट-मित्रों को कैसे समझायें कि वे हकलाते हैं। .... कुछ लोगों का कहना है की उन्हें पता है कि वे हकलाते हैं, पर उनके परिवार-जन और मित्र ये नहीं मानते। ...
उनकी ये धारना सच भी हो सकती है। लेकिन अक्सर हम पाएंगे कि हम अपने जीवन में जिन लोगों के संपर्क में ज़्यादातर आते हैं , उन्हें ये पता है कि हम हकलाते हैं। .. ऐसा हो सकता है कि ये लोग हकलाहट के बारे में हमसे बात करने में सहज महसूस नहीं करते हों , या उन्हें ये चिंता हो की हमें बुरा लग सकता है। ...
तो अब समय आ गया है की हम अपने सिर को रेत से बाहर निकालें। अपने करीबी लोगों से खुल कर अपनी हकलाहट के विषय में चर्चा करें। उन्हें ये बतलायें की हकलाहट हमारे जीवन में बहुत छोटी चीज़ नहीं है। .. उन्हें ये समझाएं कि हमारे जीवन में हकलाहट के कारण हमें किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यदि हम हकलाहट को स्वीकार कर लें , हमारे परिवार-जन हमारी हकलाहट को स्वीकार कर लें - तो हमें काफी मदद मिल सकती है। हम इस विषय पर खुल कर बात कर सकते हैं और हमारी घुटन कम हो सकती है। हम अपनी हकलाहट से भागने की जगह उसके कुशल-प्रबंधन पर ध्यान दे पाएंगे और अपनी संचार-कौशल को बेहतर बना पाएंगे।

शुक्रवार, 17 मार्च 2017

कैसे हकलाना बंद करें*




                                        *कैसे हकलाना बंद करें*

हकलाने का कोई जादुई और तुरंत इलाज नहीं है। चिकित्सा, एलेक्ट्रोनिक उपकरण, या दवाइयाँ, कोई भी, इसे रातों रात ठीक नहीं कर सकता है। हालांकि जो लोग हकलाते हैं, वे भली भांति बोल पाने के लिए इस स्थिति का मुक़ाबला स्पीच थेरपिस्ट की सहायता से स्वयं भी कर सकते हैं। यदि आप वास्तव में, हकलाहट ठीक करना चाहते हैं, और अपना नया जीवन शुरू करना चाहते हैं, तब इन सुझावों और तकनीकों को पढ़िये।
3की विधि 1:
घरेलू इलाज
1
मानसिक और शारीरिक तौर से रिलैक्स करिए: ख़ुद को बताइये कि आप ठीक हो जाएँगे। जब आप सोचते हैं कि आप हकलाएंगे, तब आप उसके होने की संभावना को बढ़ा देते हैं। अपने दिमाग और शरीर, दोनों को रिलैक्स कराइए।
अपने शरीर को रिलैक्स करिए:
अपनी पीठ, गर्दन और बाहों में तनाव से छुटकारा पाइये। कंधों को रिलैक्स करिए; और उनको अपने प्राकृतिक स्तर तक नीचे आने दीजिये।
बोलने से कुछ सेकंड पहले अपने होंठ फड़फड़ाइए। गायक, गाने से पहले, इसी तरह से वार्म-अप करते हैं।
बाहों और पैरों में जो भी तनाव हो, उसे झटक कर दूर करिए। अंगड़ाई लीजिये।
मस्तिष्क को रिलैक्स करिए।
ख़ुद को बताइये: “मैं इस हकलाहट से बड़ा हूँ; हकलाहट मुझसे बड़ी नहीं है!”
ख़ुद से यह मत कहिए कि यह जीने और मरने का सवाल है। हकलाहट से चिढ़ तो होती है, मगर यह दूसरों के लिए उतनी बड़ी समस्या नहीं है, जितनी आपके लिए। इसी विचार से रिलैक्स होइए।
ध्यान को अपने मन पर केन्द्रित करिए। फिर नियमित सांसें लेते हुये, ध्यान को अपने शरीर के टिप्स पर जाने दीजिये। इसको एक तरह के मेडिटेशन की तरह भी किया जा सकता है।
2
शीशे के सामने खड़े हो जाइए, और कल्पना करिए कि दिखने वाला व्यक्ति कोई और है: किसी भी चीज़ के बारे में बातें करना शुरू करिए – आपका दिन कैसा रहा, आप कैसा महसूस कर रहे हैं, बाद में आप क्या खाएँगे – और देखिये कि आपकी हकलाहट गायब हो जाएगी।
यह तो सच है कि शीशे के सामने बात करना सचमुच के व्यक्ति से बात करने से फ़र्क है, परंतु ये अभ्यास आपके आत्मविश्वास को अच्छा बढ़ावा देगा। जब आप किसी से बात करने की तैयारी करें, तब याद रखिए कि आपने शीशे के सामने कितनी अच्छी तरह से बोला था।
प्रति दिन अपने आपसे 30 मिनट बातें करने की कोशिश करिए। शुरू में तो यह अजीब लगेगा, मगर यह अभ्यास आपकी बिना हकलाहट की आवाज़ को सुनने के बारे में है। इससे आपको बहुत विश्वास मिलेगा।
3
किताबों को सस्वर पढ़िये: इससे आपका आकर्षण कौशल बढ़ेगा। बस, ज़ोर से पढ़िये। शुरू में तो यह कठिन लगेगा, मगर इससे आपको सांस लेने की शिक्षा मिलेगी। हकलाने वाले व्यक्तियों की एक बड़ी समस्या, यह जानना होती है, कि पढ़ते और बोलते समय सांस कब ली जाये, साथ ही आपको हकलाहट से बाहर आने का अभ्यास होगा।
4
जो शब्द आप बोलने जा रहे हैं, उसका चित्र अपनी कल्पना में लाइये: इसमें महारत हासिल करना तो मुश्किल है, मगर इससे मदद मिलती है। अगर आप शब्दों की कल्पना कर सकते हैं, तब वे आपके हो जाते हैं, और फिर वे फिसल कर हकलाहट के क्षेत्र में नहीं जाएँगे। अगर आप उनकी कल्पना नहीं कर सकते हैं, तब वे आपके हो ही नहीं सकते। जो भी आप कहने जा रहे हैं, उसका स्पष्ट मानसिक चित्र बना लीजिये।
अगर आप किसी विशेष शब्द पर लड़खड़ा रहे हों, तो कोई ऐसा शब्द इस्तेमाल करिए जिसका वही अर्थ हो – पर्याय। हो सकता है कि यह शब्द आसान हो, जिस पर कि आप फिसल नहीं जाएँगे।
अगर आप किसी शब्द पर लड़खड़ाते हैं, तो उसको स्पेल (spell) करने का प्रयास करिए। शायद आप उसको धीरे धीरे और एक-एक अक्षर कर के बोलेंगे, मगर आपको ये तो संतोष होगा कि आप उसे बोल पाये।
अगर आपको शब्दों की कल्पना करने, या उनको स्पेल करने में समय लगता है, तो भी उससे डरिए मत। हमें यह शिक्षा दी गई है कि चुप्पी भयानक होती है; आपको अपने आपको यह सिखाना है कि चुप्पी एक अवसर है, और आपको उसका लाभ उठाना है।
5
जब आप हकलाते हैं, तो कोशिश करिए कि ब्लॉकों के बीच से तनाव निकालने की कोशिश की जाये: हर ब्लॉक के अंत में, गले से गहरी आवाज़ निकालने का अभ्यास करिए। जैसे कि: "It's s-s-s-s-s-. GRRRRRR It's silly." रुक कर "Blah" कहिए, और फिर चालू हो जाइए।
6
दिमाग के सही फ़्रेम में आइये: बात शुरू करने से पहले निराशावादी नहीं, बल्कि आशावादी बनिए। कभी कभी हकलाने का डर हकलाहट का कारण बन जाता है।[१] उससे डरने, और यह सोचते रहने की जगह कि अभी वह हो जाएगा, कोशिश करिए कि आप सफलता की कल्पना करें। इससे आपको होने वाली किसी भी परेशानी को नष्ट करने में सहायता मिलेगी।
7
बोली सरल बनाने के लिए सांस लेने की एक्सरसाइज़ (exercise) का प्रयास करिए: अक्सर, हकलाने वाले व्यक्तियों को हकलाते समय सांस लेने में कठिनाई होती ।
सांस लेने की एक्सरसाइज़ करने से आवाज़ वापस पाने में बहुत सहायता मिल सकती है। बोलने में गति लाने के लिए, इनका परीक्षण करिए:
बोलना शुरू करने से पहले, कुछ गहरी सांसें लीजिये। कल्पना करिए कि आप पानी में डुबकी लगाने जा रहे हैं, और आपको डुबकी लगाने से पहलेगहरी सांसें लेना आवश्यक है। इससे आपका सांस लेना सरल हो सकता है, और उनको नियमित करने में भी सहायता मिल सकती है। यदि किसी सोशल स्थिति में, आपको ऐसा करने में असुविधा महसूस होती है, तब नाक से गहरी सांसें लीजिये।
जब आप बोलें, और यदि हकलाएँ, तो सांस लेने की याद रखिए। जो लोग हकलाते हैं, वे अक्सर हकलाहट शुरू होते ही सांस लेना भूल जाते हैं। ठहरिए, अपने आपको सांस लेने के लिए कुछ समय दीजिये, और शब्द, या वाक्य से फिर से सामना करिए।
किसी प्रकार के स्पीड रेकॉर्ड बनाने की कोशिश मत करिए। तेज़ बोलने वाले तो बहुत से हैं, मगर आपका लक्ष्य उनकी तरह बोलना तो नहीं है। आपका उद्देश्य तो सिर्फ़ यह है कि आप अपनी बात कह सकें, और उसको समझा जा सके। आम गति से बोलना सीखिये। न तो कोई जल्दी है, और न ऐसा कोई मुक़ाबला, कि कौन किसी और से बातों में जीत सकता है।
8
अपनी बातों में थोड़ी लय लाने का प्रयास करिए: जो लोग हकलाते हैं, वे गाते समय नहीं हकलाते हैं: इसके बहुत से कारण हैं, गाते समय शब्दों को खींचा जाता है, तथा उनकी आवाज़ स्मूथ (smooth) होती है, और उसको आम आवाज़ से अधिक सरलता से निकाला जाता है। यदि आप अपनी आवाज़ में थोड़ी लय ले आते हैं, (उसमें मार्टिन लूथर किंग, जूनियर जैसे भाषण देने के गुण ले आयें) तब शायद आप पाएंगे कि या तो आपकी हकलाहट कम हो जाएगी, या बिल्कुल ही चली जाएगी।
9
यदि आप भाषण दे रहे हों, तब किसी की भी ओर सीधे मत देखिये: या तो लोगों के सिरों के ऊपर देखिये, या कमरे में पीछे किसी बिन्दु पर देखिये। इस तरह से आप उतने नर्वस नहीं होंगे जिससे कि हकलाने का चेन रिएक्शन (chain reaction) शुरू हो जाये।
यदि आप किसी से आमने सामने बात कर रहे हों, तो देखिये कि क्या आप उनसे नियमित रूप से आँखें मिला पाते हैं। आपको उन्हें पूरे समय घूरते रहने की आवश्यकता नहीं है, मगर आँखें मिलाने से वे सहज हो जाएँगे, और उससे आपको भी सहज होने में सहायता मिलेगी।
10
छोटी छोटी बातों पर परेशान मत होइए: यह समझ लीजिये, कि गलतियाँ तो आपसे होंगी ही। मगर, केवल गलतियाँ ही तो नहीं होंगी। आप किस प्रकार उन गलतियों से वापस आते हैं, और कैसे अपना धैर्य बनाए रखते हैं, वह महत्त्वपूर्ण है। समझ लीजिये कि कुछ लड़ाइयाँ तो आप हारेंगे, मगर आपका लक्ष्य तो महायुद्ध पर विजय प्राप्त करना है
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शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

स्वयं सहायता क्यों

                                                                  स्वयं सहायता क्यों 
पिछले आठ वर्ष   में  टीसा  से  ज्यादातर  लोगों  ने  बताया  कि  स्पीच  थैरेपी  से  उन्हें  सिर्फ  कुछ  दिनों  या  हफ़्तो  का  लाभ  मिला  कुछ  समय  बाद  उनका  हकलाना  फिर  से  लौट  आया    इससे  हमें  दो  बातें  समझ  में  आती  हैं ; एक -जैसे  मलेरिया  या  बोकाइटिस  का  क्योर  [इलाज] सम्भव  है , वैसा  स्टेमरिंग  में  नही       दूसरी  बात -हकलाने  में  काफी  लम्बे  समय  तक  मदद  की  जरूरत  पड़ती  है  और  इसी  लिय  जरूरत  है  कि  हम  अपने  स्पीच   खुद  बनें    दूसरा  कब  तक  हमारी  मदद  करेगा  और  करे  भी  तो  लम्बे  समय  तक  उसकी  .फीस  कितने  दे पायंगे  यानी  अगर  आप  अगले  एक  साल  तक, बाइक  पर  भारत  भमण  की  योजना  बना  रहे  है  तो  स्पार्क  प्लग  साफ़  करना  भी  सीख  ले  और  पंचर  लगाना  भी' क्योंकि  तभी  तो  सफ़र  का  मज़ा  आएगा।    
यहाँ  एक  अहम  सवाल  यह  है  कि  क्या  आप  अपनी  मदद  खुद  कर  सकते  है टीसा  का  अनुभव  यह  है  कि  ज्यादातर  हकलाने  वाले, भारत  में  अपने  ही  प्यासों  से ,ठीक  हुए  है।  अधिकतर  तो  कभी  किसी  थेरेपिस्ट  के  पास  गए  नही।   थोड़े  से  जो  गए , ही  महीनो  में  सिखाई  गई  तकनीक  का  प्रयोग  बंद  कर  चुके  थे  और  अपने  स्तर  पर हाथ -पांव  मार  रहे  थे  या  कुछ  नया  तलाश  रहे  थे। इनमें  से  ज्यादातर  थैरेपी  की  असफलता  के  लिए  खुद  को  ही  जिम्मेदार  मान  कर  अंदर  निराश  हो  चुके  थे; फलां  व्यकित  तो  क्योर  हो  गया  मगर  में  क्यों  नही।  शायद  मैने  मेहनत  नही  की; शायद  में  अभागा  हूँ  आदि।        
कम  ही  थेरेपिस्ट  इस  मुददे  को  खुल  कर  समझाते  है  कि हकलाने  की  असली  वजह  कोई  नहीं  जानता  और  इस  लिए  क्योर  भी  किसी  के  पास  नहीं  हे, और  जिसे  लोग  क्योर  समझ  रहे  हैं  वह  सिर्फ  कंट्राल  या मैनेजमेंट  है  -या  सिर्फ  बहुत  ही  बिरलों  में स्पॉनटेनियस  रिकवरी  [जड़  से  ठीक  ];    जिसे  न  तो  कोई  समझता  है  और  न  ही  किसी  दूसरे  को  दे  सकता  है।     जैसे  कभी  -कभी   कैंसर  के  ऐसे  रोगी  जिन्हें  डॉक्टर  जवाब  दे  चुके  हैं, अपने  आप  ही ठीक  होने  लगते  हैं   -  क्यों   कोई  नहीं   जानता।  मगर  ऐसे   मामले  बेहद  कम  हैं।