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रविवार, 27 सितंबर 2015

BOCK CORRECTION TECHNIQUE

                                        आठवां नियन                                           
BOCK CORRECTION TECHNIQUE  का इस्तेमाल करके अपनी बोलने की मासपेशियों के व्यवहार को बदलना या दूर करना। पिछले नियम से आपने अपने हकलाने की वजह से अपनी बोलने वाली मासपेशियों के बदलाव का अध्ययन किया। इस नियम से मैं बताउँगा कि इन्हें BOCK CORRECTION TECHNICQUE का इस्तेमाल करके दूर करें। BOCK CORRECTION TECHNICQUE तीन प्रकार की होती हैं , जन्हें हम उन गतिविधियों को बदलने के लिए इस्तेमाल करते है जो हम हकलाते वक्त करते हैं -                                                 1 . POST  BLOCK CORRECTION .                                                                                                         2 . IN BLOCK CORRECTION .                                                                                                              3 . PRE  BLOCK CORRECTION .

                                                                                                                                                                                              

Graund Rules सातवाँ नियम

                                                      सातवाँ नियम                                                                              
इस बात का निरीक्षण करें कि हकलाते समय आपकी बोलने वाली मांसपेशियाँ क्या करती है। जो कि असमान्य जनक हों ; - यह नियम हकलाहट से स्वयं चिकितसा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।  इसके अनुसार हमें यह पता करना होता हैं कि हकलाते समय हमारी बोलने वाली मांसपेशियाँ क्या करती है। जो कि उसके सामान्य काम से गलत हों। इसमे आप सर्व प्रथम यह जानने कि जरूरत है कि आप गलत क्या करते है।  और फिर उन्हें दूर कर दो यह जानने के लिए कि आप अपनी बोलने वाली मासपेशियों का कैसे गलत इस्तेमाल करते हैं। आप उन हकलाने वाली परिसिथतियों को दोहराए यह जानने के कई तरीके हो सकते हैं। जैसे जानबूझकर काफी देर तक हकलाए और अपनी गतिविधियों पर ध्यान दे। इसके लिए आप रिकार्डर कर के भी इस्तेमाल कर सकते हैं। कांच के सामने या किसी व्यवित के साथ भी आप यह जानने का प्रयास कर सकते हैं। निरीक्षण करने के बाद आप पायेंगे कि आपकी बोलने वा मांसपेशियाँ कई कठिन हरकते करती हैं ,जो कि आवाज उतपत्ति में सहायक नहीं होती हैं। इन असमान्य गतिविधियों को रोकने के लिए हम BOCK CORRECTION TECHNICQUE  का इस्तेमाल करते है।                                                                                                                                                           

Graund Ruels छठा नियम

                                                       छठा नियम                                                                      
जिस व्यवित से बात कर रहे हो उससे हमेशा ऑख मिलाकर बात करो ; - यह  संभावना  है कि यह काम पहले से भी करते हों पर यदि न करते हों तो सुनने वाले की आँखो से देखने का अधिक या कम लगातार प्राकृतिक तरीके से देखने की शुरुआत करें। यह उस समय ज्यादा महत्वपूर्ण है जब आप हकला रहे हों। लगातार एक प्राकृतिक आँख का समबन्ध बनाए रखने से आपके अंदर से शर्म की भावना धीरे -धीरे कम होगी। इस नियम का मतलब यह नहीं है कि आप सुनने वाले की आँखो में घूरने लगो। बात को शुरू करने से पहले आँखो के बीच समबन्ध बनाए और बात करते समय एक प्राकृतिक रूप से आँखो के बीच समबन्ध बनाए रखें। इसलिए आपको एक स्वस्थ्य आँखो का सम्बन्ध अपने और सुनने वाले के बीच स्थापित करने की आदत डालें।                                                                                       
पाँचवा  नियम  
 अपनी ओर से इस बात का भरसक प्रयत्न करो की हकलाने की समस्या की वजह से किसी परिसिथति से भागने का प्रयत्न न करो, अपनी हकलाहट को कम करने के लिए हम कई कामों को न करना ,शब्दों को बदल देना या बात को न कहना जैसी गलत आदत डाल लेते हैं। हमारी अधिकतर तकलीफ कामों से बचकर भागने की प्रवृत्ति के कारण होता है। इस प्रकार की बचकर भागने की गति विधियाँ हमें थोड़े समय के लिए आराम देती है ,लेकिन यह आदत धीरे -धीरे हमारे डर को बहुत अधिक बढ़ा देती है। उदाहरण के लिए जैसे जब फोन की गंटी बजती है तो हम फोन नहीं उठाते क्योंके हमें लगता है कि हम ठीक ढक से बोल नहीं पायेंगे। धीरे -धीरे इस बच कर भागने की आदत के कारण आप अपने आप मे फोन के प्रति डर पैदा कर लेंगे। डर को बनने से रोकने के लिए इस प्रकार का पूरा प्रयत्न करना चाहिए कि कभी जैसे पार्टी ,सामाजिक उत्सव आदि। यह बहुत ही कठिन कार्य है लेकिन कई विशेषज्ञ यह मानते हैं। यह नियम किसी नियम की अपेक्षा सबसे आराम देता है। तो आज से हकलाहट की वजह से किसी भी काम से भागने का प्रयत्न मत करें।                                                                                                                                                                                           

Graund Ruels चौथा नियम

  चौथा नियम      
अपने अव्यवहारिक संकेतो, चेहरों की सिलवटों या हरकने को जो आप हकलाते समय करते हैं उको पहचानो जो आप हकलाने की समस्या से बचने के लिए करते हैं, और उन्हें पूरी तरह से दूर कर दो ; - यह नियम हकलाते समय के कई लक्षणों जैसे सिर हिलाना, हाथ हिलाना पैर पटकना, आँखे लगातार झपकाना ,घुटने टकराना ,आँखे की भौहे उठाना ,चेहरे में खिचाव ,उँगली पटकना ,अपने मुँह को ,से बंद कर लेना आदि। यह लक्षण और भी कई प्रकार के हो सकते है ,जो आप हमेशा हकलाते समय करते हैं इन्हें उन लक्षणों से न मिलाए जो आप कभी कभी करते है। और जिनका उददेश्य बात को समझाने का होता है। अपने खुद को जानने के लिए आपको अपने अन्दर के इन लक्षणों को पहचनना होगा और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करना होगा। यह गतिविधिया अधिकतर आप हकलाहट की तकलीफ से बचने के लिए करते है। लेकिन यह आपकी हकलाहट की असमान्य और बढ़ा देती है। इसकी भी संभावना है कि आप कोई भी अप्राकृतिक व्यवहार न करते हो, लेकीन फिन भी अपने आप का सावधानी पूर्वक निरीक्षण करें। आप पाते हैं, कि आप इस तरह के व्यवहार करते है तो उन्हें दूर करने का प्रयास आरम्भ कर दें क्योंकि येआपके बोलने के लिए पूरी तरह से अनावश्यक है।                                                                                                                                                                                                                                                                                

Graund Rules तीसरा नियम

   तीसरा नियम                                                                                 
खुलकर हकलाओ और इस बात को छुपाने का प्रयास मत करो कि मैं हकलाता हूँ ; - इस बात को सामने लाये कि आप हकलाते हैं, क्योंकि  इस बात से कोई फायदा नहीं है। कि हम अपने आप को एक सामान्य व्यवित की तरह बोलने वाला समझते रहें। हकलाहट को छिपाने का प्रयत्न हमारी बस एक ही प्रकार से सहायता कर सकता हैं ,इसे बढ़ाकर। जिन लोगों से आप बात करते हों उनसे बता ओ कि हम  हकलाते हैं और आसानी के साथ अपनी इच्छा से हकलाये इससे आपकी शर्म कम होगी जो आपके लिए बहुत तकलीफ देती है। यदि  हकलाने वालाव्यवित यह स्वीकार कर ले कि यह हकलाता है तो इससे उसके अंदर शर्म की भावना कम होने के साथ ही साथ उसका बात करने का आत्मविश्वास बढ़ेगा। यह नियम अपने जीवन से उतारना इतना आसान नहीं हैं लेकिन धीरे - धीरे यह हमारे अंदर के डर को खत्म कर देगा।  अपनी हकलाहट को कम करने के लिए तकनीकों का खुल कर इस्तेमाल करें। इस नियम का मुख्य उददेश्य यह है कि यह आपके मानसिक तनाव को सहने की योग्यता को बढ़ाता है और आपके अन्दर आत्म विश्वास बढ़ता है। जानबूझकर हकलाने की वजह से आप अनियंत्रित हकलाहट को नियंत्रित हकलाहट में बदल सकते है।                                                                                                                                           

Graund rules दूसरा नियम

  दूसरा नियम                                                                                    
 जब आप किसी बात की शुरुआत करें तो बहुत आराम के साथ बिना ताकत लगाए करें, और हो सके तो उस शब्द की पहली ध्वनि को लम्बा खींच लो जिससे आप डरते हैं ; - इस नियम से आपके होठों ,जीभ और जबड़े की हल्की और आसान क्रियाए हों। यह महत्वपूर्ण नियम   इस बात का सुझाव देता है,कि जब भी हम हकलाये हमें अपने शब्दों को बहुत ही शान्त स्वभाव से बोलने का प्रयत्न करें। यदि आप इस नियम को माने और आसानी के साथ हकलाये तो यह आपके हकलाने की डर को कम कर देगी। इस नियम में यह भी सुझाव दिया गया है ,की  जिस शब्द से आप डरते हों उस शब्द की पहली ध्वनि को लम्बा खींचकर बोलें। तो आज से आप एस बात का निश्चय लें कि आसमान्य और तकलीफ देह हकलाने के बजाय अधिक से अधिक आसान और शा न्त तरीके से हकलाने का प्रयत्न करें।  बलपूर्वक हकलाने का प्रयत्न करना चाहिए।                                                                                                                    

प्रथम नियम Graund rules

 प्रथम नियम
 हमेशा धीरे धीरे सोच समझकर बात करने की आदत डालें चाहे आप हकलाते हो या नही ;  - धीरे चलना,तेज चलने की अपेक्षा बहुत अच्छा हैं ,जैसा कि हम जानते हैं ,कि तेज खरगोश की अपेक्षा धीरे कछुए को नियनित्रत करना ज्यदा आसान है धीरे धीरे और पर्याप्त समय ले कर बात करने से आप समय के दबाव को भी अनुभव नहीं करेंगे जैसा कि हम हकलाने वाले कि यह बिना हकलाये बोल सकें। इससे बस तनाव बढ़ता है। समय के दबाव को कम करने के लिए इस बात की भी सलाह दी जाती हैं ,कि बैट करते समय हमें वाक्यों के बीच थोड़ी देर के लिए रुकना चाहिए। यह नियम इतना आसान नहीं हैं ,जैसा की हम सोचते हैं इसे अपने जीवन में अपनाने के लिए हमें बहुत एकाग्रता की आवश्यकता है।
 जीवन में प्रयोग कैसे करें ; -                        
1 . जब आप धारा प्रवाह में बोलते हैं ,तो उस पर भी ध्यान दें। इस चिकित्सीय प्रकिया पर काम करते समय अधिक से अधिक बोलने का प्रयास करें जीतना आप कर सकते हैं। दोस्तो आप यदि यह लगातार करते हैं ,तो आप पाएंगे कि आपमें कन्ट्रोलिग आ रही है और विश्वास बढ़ रहा है। डर कम हो रहा है। जिन लोगों से आप भागते थे अब उनमें दोस्ती होगी। अपको लगेगा कि दुनिया बहुत अच्छी है लोग मेरी बात सुनते है। जब आप छोटे में 10 मिनट तक प्रैविटस करें जब आप अकेले हों। इससे जो बात आप दूसरो के साथ करना चाह्ते हैं यह धीरे - धीरे बोले हैं। दूसरा जब भी आप किसी के साथ हों तो समय के दबाब वाली भावनाओं का हमेशा प्रतिकार करो !उन क्षणों में जब आपसे बोलने की आशा की जाती है तो कुछ बार आप बहुत ही जल्दी का अनुभव करते लगते हैं। आपको यह लगता है कि समय आपके पास कम है और एक भी क्षण आपको बरबाद नहीं करना है। अपनी ओर से भरसक प्रयास करो की समय के दबाव से बचो। हकलाने वाले इस बात के भी आदि होते है कि ए वे शान्त नहीं रहना चाहते जब वे शर्म का अनुभव करते हैं। आपको बात करते समय हमेशा बीच - बीच में रुकने की आदत डालनी चाहिए। अपना समय लो। यह ध्यान रखो कि लोग तुम्हारी तब तक प्रतीक्षा करेंगे जब तक तुम अपनी बात समाप्त नही कर लेते। रुको और अपना समय लो।                                                                                                

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

ग्राउड रुल

जब हम किसी  कार्य में बार बार फेल होते हैं ,तब हमारे मन मे डर पैदा होने लगता है। आइये मैं कुछ ग्राउड रुल आप को बताता हूँ। यदि आप इसको फालो करते है तो निश्चत ही आप ब्लाकेज को खत्म करना छोड़ देंगे और ब्लाकेज को पार करने का प्रयास करना सीखेंगे। जब हम बोलना चाहते है ,तब हमारे मन में कुछ इस प्रकार के विचार आते है। मुझे जल्दी बोलना चाहिए क्योंकि यदि आराम से बोलुँगा तो सुनने वाला बोर हो जायेगा और उसके पास इतना समय नही है। कि वह मेरी बात को सुने। इसलिए हमे तुरन्त ही जल्दी से जबाब देना चाहिए। दोस्तो आपने कभी सोचा है ,कि मै ऐसा क्यों सोचता हूँ ?विचार कीजिए। चोर सोचता है दुनिया में सब चोर है। मेरा मतलब साब है। जब कोई आपसे बात करता है तब आप उसकी बात को विल्कुल नहीं सुनते है और आप का ध्यान जबाब का प्रीब्यू देख कर कठिन अक्षर ढूढने में रहता है। अर्थात आप को लगता है। कि जल्दी से यह व्यवित  बोले। आप विल्कुल ध्यान से नहीं सुनते हैं इसलिए आपको 100 /यह विश्वास हो गया है ,कि कोई व्यवित मेरी बात नहीं सुनता हमें जल्दी जल्दी अपनी बात बोलना चाहिए और आप 25. 50 शब्द प्रति मिनिट बोलने का प्रयास करते है। और हमेशा समय के दबाब में रहते है। मैं बताना चाहूँगा जो व्यवित जितनी बड़ी पोस्ट में होता है ,वह उतना अच्छासुनने वाला होता है। और धीरे बोलने वाला होता है। उदाहरण अटलबिहारी बाजपेयी जी। आप लोग कहते हैं ,कि नहि मेरी कण्डीशन कुछ और है। मेरा जॉब कुछ और है धीरे बोलने से मेरा काम नहीं होगा महोदय मैं बताना चाहूँगा अच्छा वक्ता वही होता है ,जो अपनी बात को बिना डर के विना उलट पलट के ऑखे मिला कर सकें। जब आप बोलें तब समय का दवाव मन में विल्कुल नहीं आने दें। आप सोचें जब इसकी बात मैंने ध्यान से सुना है ,तब यह भी मेरी बात ध्यान से अवश्य सुनेगा। मैने आज तक 500 से अधिक इन्टरब्यू दिया होगा। किसी भी इन्टरब्यू में यह नहीं कहा गया हैं ,कि जल्दी बोलो मेरे पास समय नही है।आपस ? और जब मैं स्वीकार्य कर लिया कि हाँ मैं हकलाता हूँ। तब तो और सरल हो गया सामने वाला समझ गया यह हकला है। और यह मानसिक रूप से तैयार हो गया मेरी आवाज सुनने के लिए। जब दोनों लोग तैयार हो गये तब निशिचत रुए से वातचीत सफल होगी। वास्तव में होता यह है , कि हम टाइम दबाब में आ जाते हैं। तब हमारी स्पीड बढ़ जाती है। स्पीड आर्गन विगड़ जाते हैं आँखे यहाँ वहाँ होने लगती है। और हम सही वर्तालाप नहीं कर पाते हैं। क्योंकि हम अपनी लड़ाई में उलझे हैं और सुनने वाला भी यही सोच रहा था ,कि यह आम व्यवित जैसे बोलेगा और आम व्यवित जैसे आप बोल नहीं रहे हैं। तो उसे भी आपकी आवाज सुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार होने पड़ेगा। यह तैयार है। हीं ,और आप बोलना प्रारंभ कर दिये तब उसे लगता हैं ,यह कैसे बोल रहा है। और वह पूरा प्रयास भी करता है ,लेकिन आप समय ही नहीं देते उसे। तब वह टेंशन हँसी के रूप में बाहर आता है। और आप समझते हैं ,कि यह मेरी हँसी   ........... तब उसे लगता है ,यह कैसे बोल रहा है। और यह पूरा प्रयास भी करता है ,लेकिन आप समय ही नही देते उसे। तब वह टेंशन हँसी के रूप में बाहर आता है। और आप समझते है ,कि यह मेरी हँसी।

बुधवार, 23 सितंबर 2015

हकलाहट Vs आप हकलाहट आपको मैनेज करती है ?

                                                          हकलाहट  Vs  आप                                  
                       हकलाहट आपको या आप हकलाहट को मैनेज करते हैं।  
दोस्तो मैन कई हकलाने वाले लोगों से बात किया,कई विश्वविद्यालयों के  थिसिस को पढ़ा जिसमें हकलाहट को रिसर्च किया गया है। तब मैंने पाया और स्वयं 35 वर्ष तक अनुभव भी किया कि अधिकतर लोगों को हकलाहट मैनेज करती है। जब हकलाहट का ब्लाकेज आता या आने वाला होता है, तब हम इतना नर्वस हो जाते  है ,कि हमें हकलाहट मैनेज करने लगती है। आइये कुछ          
उदाहरण देता हूँ।                            
1 . "पानी" शब्द  को अभी नहीं बोल पाओगे इसीलिए "एक गिलास पानी लाओ" वाक्य  को ऐसा  बोलो ऐसा "लाओ एक गिलास पानी" ऐसा इसलिए बोले क्योकि शायद  बोलते बोलते  आपको "पानी" शब्द बालने का विश्वास बन जाये और वाक्य किसी तरह पूरा हो जाएगा और हमारी हकलाहट का  ब्लाकेज किसी को पता नहीं चलेंगी। मैं छुपाने में सफल हो जाऊगा। यहाँ पर आपने देखा कि हमें हकलाहट कैसे मैनेज करती है।  और हम हकलाहट के गुलाम  कैसे बने है।                                                                                                                       2 . अब यदि हकलाहट कहती है कि-पानी शब्द अभी आप बोल सकते है, बाद में पता नहीं आप बोल पाओगे या नहीं। इसलिए अभी आप "पानी" बोलो तब हम "एक गिलास पानी लाओ" वाक्य को हकलाहट के डर के कारण "पानी लाओ एक गिलास" बोलते है। यहाँ पर पानी शब्द को पहले इसलिए बोल रहे है, क्योकि हकलाहट हमें यह कह दी है,कि अभी पानी बोल सकते हो बाद में ए शायद ना बोल पाओगे । इसलिए हम पानी शब्द को पहले ही  बोले  देते है। हम हकलाहट द्धारा इसलिए मैंनेज हो रहे है, क्योकि हमे लगता है. कि यदि हम पानी पहले बोल देंगे तो हमारी आवाज किसी तरह निकल जायेगी और  ब्लाकेज नही आयेगा। मैं हकलाहट को छुपाने में सफल हो जाऊगा। मेरी मजाक नही उड़ पाएगी, मै सुरक्षित हो जाऊगा। कभी कभी हम सफल भी हो जाते है। हकलाहट अपना हुकम चलाती है हम मानते रहते है। धीरे धीरे हम हकलाहट के पक्के गुलाम बन  है।
3 . अब यदि हकलाहट कहती है,कि आप पानी शब्द को आगे करो या पीछे बोल तो पक्का नहीं सकते, जैसे ही हकलाहट का यह आदेश हुआ वैसे ही आप तुरन्त पानी की जगह जल या वाटर जैसे शब्दों का यूज करके कहते हैं एक गिलास वाटर लाओ या एक गिलास जल लाओ। ऐसा बोलने से आपको काफी आराम मिलता है और आप सोचते है कैसे भी निकला ,निकला तो सही है।  ब्लाकेज नही आया। हमारी हँसी नही उड़ाई गई। मैं सफल हो गया। जबकी सच्चाई यह है कि जब भी दूसरी बार आपको पानी शब्द बोलना पड़ेगा तब आपका डर कहेगा तुम पिछली बार पानी की जगह जल या वाटर यूज किये थे। इस बार भी कर दो, वरना  पानी में अटक जाओगे।
मेरा मतलब बहुत साफ है,कि अक्षर या शब्द के पर्यायवाची शब्द बोलने से आपको क्षणिक फायदा भले ही नजर आता हो लेकिन ऐसा करने से आपकी समस्या और बढ़ रही है। कुछ दिन बाद आपके लिए वाटर और जल भी कठिन हो जाएंगे । पानी तो कठिन है ही । तब आप इशारे करके ही बोल पायेंगे। और आपके ब्लाकेज बढ़ेंगे। चेहरा बिगड़ेगा टेन्सन पैदा होगा और आँखे नही मिला पायेंगे। यहाँ पर मैंने पानी का उदाहरण लिया है ऐसे कई शब्द हैं जिसे आप हकलाहट की आज्ञा के अनुसार मैनेज करते है। मैनेज करने के कई तरीके भी अलग अलग हो सकते है जरूरी नही है कि मैंने जो उदाहरण दिए है वही आप करते हो। अलग अलग तरीके से आपको हकलाहट मैनेज  करते  है। और   आप तड़फते रहते है। इससे सिध्द होता है कि
                            "अब मैं सिखाऊगा कि आप हकलाहट को कैसे मैनेज कर सकते हैं ।
सबसे पहले स्वीकार्य कीजिए कि "मैं हकलाता हूँ "यह सही है कि यह कहना कि "मैं हकलाता हूँ" सरल काम नहीं है। लेकिन यदि स्टेप बाई स्टेप किया जाये तो विल्कुल सरल है। मैं आपको कुछ जानकारी देता हूँ। पेड़ जिसकी उचाई 20 फिट है उसे दूसरी जगह ले जाकर तैयार करना काफी कठिन ही नहीं वल्की असंभव है। लेकीन यदि 20 फीट ऊचे पेड़ का दाना ले जाकर दूसरी जगह जमीन में डाल दिया जाये और सही देख भाल की जाए तब कितना आसान है। यदि कोई कहे कि ट्रक पंचर हो गया है टायर फट गया है। २-४- लोग उठाओ कठिन है शायद असंभव भी है। लेकिन यदि जैक दे दे तो कितना आसान है। इसी प्रकार यहाँ भी है। प्रारंभ में आपको लग सकता है, कि सब कुछ गड़बड़ होने चाला है। प्रारंभ में बहुत सारे असभव है। मेरी कन्डीशन कुछ और है,  प्रारंभ में बहुत सारे लोग इस तरह बहाने करते  है।
आइये बताते है। ,
- सर मैं यह नहीं कर सकता ।
-सर मैं कालेज में हूँ।
- सर मैं वकील हूँ। इस प्रकार कैसे बोल सकता हूँ।
- सर मेरी परीक्षा है बाद में प्रारंभ करेंगे।
- सर मेरे भाई की शादी है बाद में आऊगा।                     
- सर मेरे पापा कि तबियत ठीक नही है मै बाद में आऊगा। इसी प्रकार लोग बोलते यह ऐसा क्यों बोलते हैं , क्योंकि हकलाहट मे मैनेजमेन्ट इतना स्ट्रॉग हैं, कि आपका मैनेजमेन्ट फैल हो रहा है। यदि आप अपना हुक्म चलाना चाहते हैं, तो आप अपनी हकलाहट कि प्रकृति को समझिए। स्वीकार्य कीजिए और अपने कन्ट्रोल में लीजिए और धीरे-धीरे मैनेज करना सीखिए। हकलाहट को आप मैनेज कीजिए हकलाहट आपको मैनेज न कर पाये। किसी ने कहा हैं,

                                आदतों को अपना गुलाम बनाओ। आदतो का स्वयं गुलाम मत बनें।।
 "हकलाहट पर विजय -----"दोस्तों आप हकलाहट में विजय तब प्रप्त कर सकते हैं, जब आप हकलाहट को खत्म करने का प्रयास करना छोड़ देंगे। हम जब रोड में गाड़ी ड्राइभ करते है तब ब्रेकर आते है। आप बताइये कि ब्रेकर को खत्म करना अर्थात खोद कर फेंकने का प्रयास करना उचित है। शायद आपका जवाब यही होगा कि ब्रेकर को पार करने कि कला सीखना उचित रहेगा। इसीलिए हम कहते है,कि  ब्रेकर का खत्म करने का ना तो प्रयास कीजिए और न ही सोचिए कि काश ब्रेकर नहीं आये यह तो आयेगा ही। हमें मात्र सीखना हैं ,कि जब ब्रेकर आये तब हम इसे पार कैसे करें। हम काफी लम्बे समय से प्रयास करते आ रहे है,कि हमारे ब्रेकर अर्थात ब्लाकेज न आये और यह बार बार आ ही जाते है। और हम बार बार फेल हो जाते है। और जब हम किसी कार्य में बार बार फेल होते है ,तब हमारे मन मे डर मैदा होने लगता हैं।
आइये मै कुछ ग्राउंड रुल आप को बताता हूँ। यदि आप इसको फालो करते हैं तो निशिचत ही आप ब्लाकेज को खत्म करना छोड़ देंगे और ब्लाकेज को पार करने का प्रयास करना सीखेंगे। हमें मात्र सीखना  है कि जब ब्रेकर आये तब हम इसे पार कैसे करें। हम काफी लम्बे समय से प्रयास करते आ रहे है ,कि हमारे ब्रेकर अर्थात ब्लाकेज न आये और यह बार बार आ ही जाते है। और हम बार बार फ़ैल हो जाते है और  जब हम बोलना चाहते हैं , तब हमारे मन में कुछ इस प्रकार के विचार आते हैं। मुझे जल्दी बोलना चाहिए क्योंकि यदि आराम से बोलूँगा तो सुनने वाला बोर हो जायेगा और उसके पास इतना समय नहीं होता कि, वह मेरी बात को सुने। इसलिए हमें तुरन्त ही जल्दी से जबाब देना चाहिए। दोस्तों आपने कभी सोचा हैं ,कि मैं ऐसा क्यों सोचता हूँ ?;विचार कीजिए। चोर सोचता है दुनिया में सब चोर है। मेरा मतलब साफ है। जब कोई आपसे बात करता है तब आप उसकी बात को विल्कुल नहीं सुनते हैं। और आप का ध्यान जबाब का प्रीब्यू देख कर कठिन अक्षर ढूढ़ने में रहता /है। अर्थात आप को लगता हैं ,जल्दी से यह व्यवित बोले आप विल्कुल ध्यान से नहीं सुनते हैं। इसीलिए आपको 100 %यह विश्वास हो गया हैं कि ,कोई व्यवित मेरी बात नही सुनता हमे जल्दी जल्दी अपनी बात बोलना चाहिए और आप 250 . 50 शब्द प्रति मिनट बोलने का प्रयास करते है। और हमेशा समय के दबाव में रहते है। मैं बताना चाहूँगा जो व्यवित जितनी बड़ी पोस्ट में होता हैं ,वह उतना अच्छा सुनने वाला होता है और धीरे -धीरे बोलने वाला होता है। उदाहरण अटलबिहारी बाजपेयी जी। आप लोग कहते है ,कि नही मेरी कण्डीशन कुछ और है। मेरा जॉब कुछ और हैं धीरे बोलने से मेरा काम नहीं होगा महोदय मैं बताना चाहूँगा अच्छा वक्ता वही होता हैं ,जो अपनी बात को बिना डर के विना उलट पलट के आँखे मिला कर सकें। जब आप बोलें तब समय का दवाव मन में विल्कुल नहीं आने दें। आप सोचें जब इसकी बात मैंने ध्यान से सुना हैं ,तब भी मेरी बात ध्यान से अवश्य सुनेगा। मैंने जब तक 500 से अधिक इंटरब्यू दिया होगा। किसी भी इंटरब्यू में यह नहीं कहा गया हैं ,कि जल्दी बोलों मेरे पास समय नही हैं। आपस ?;और जब मैं स्वीकार्य कर लिया कि हाँ मैं हकलाता हूँ। तब तो और सरल हों गया सामने वाला समझ गया यह हकलाता हैं। और वह मानसिक रूप से तैयार हो गया मेरी आवाज सुनने के लिए। जब दोनों लोग तैयार हो गये तब निश्चित रूप से वातचीत सफल होगी। वास्तव में होता यह हैं ,कि हम टाइम दबाब में आ जाते हैं। तब हमारी स्पीड बढ़ जाती है। स्पीड आर्गन विगड़ जाते हैं आँखे यहाँ वहाँ होने लगती है। और हम सही वर्तालाप नहीं कर पाते हैं। क्योंकि हम अपनी लड़ाई में उलझे हैं और सुनने वाला भी यही सोच रहा था ,कि यह आम व्यवित जैसे बोलेगा और आम व्यवित जैसे आप बोल नहीं रहे हैं। तो उसे भी आपकी आवाज सुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार होना पड़ेगा। यह तैयार है नहीं,और आप बोलना प्रारंभ कर दिये तब उसे लगता है, यह कैसे बोल रहा है। और वह पूरा प्रयास भी करता हैं ,लेकिन आप समय ही नहीं देते उसे। तब वह टेंशन हसीं के रूप में बाहर आता है। और आप समझते हैं ,कि यह मेरी हसीं। ........ तब उसे लगता है ,यह कैसे बोल रहा है। और वह पूरा प्रयास भी करता हैं ,लेकिन आप समय ही नही देते उसे। तब वह टेंशन हँसी के रूप में बाहर आता हैं। और समझते है ,कि यह मेरी हसीं। ......... 

सोमवार, 21 सितंबर 2015

Voluntary Stammering ( V S )

                                  Voluntary Stammering ( V S )
 इसे हिन्दी में झूंठी  हकलाहट  कहते हैं। इसे संक्षेप में हम  बार बार VS(Voluntary Stammering) कहेंगे  . इसके लिय आप एक कापी लेकर उसमें "क से लेकर ज्ञ तक", 'अ से अः" तक और "A से Z"  तक  लिखिए और कांच के सामने  बैठ कर VS  करके बोलिए। अ अ अ-------अ   । यहाँ पर ध्यान रखिये कि जब आप हकलाते हैं, तो आपकी आवाज यवं स्पीज आर्गन आपके कन्ट्रोल में नहीं रहते है। जबकी voluntary stammering विल्कुल कन्ट्रोल में रहते है। इसी प्रकार सभी अक्षर ले सकते है। आइये बोलते हैं।
 अ अ अ अ अ अ  अ अ - - V . S. करके अ अ अ अ b b b b V . S - करके. S b&b&b&b&b ए ए ए ए ए V . S- करके ए -ए -ए -ए उ उ उ उ उ V. S- करके उ -उ -उ -उ क क क क क V . S - करके क क क क ख ख ख ख V . S - करके ख ख ख ए
 ग ग ग ग V-S - करके ग -ग -ग -ग यहाँ पर हमने आपको पहले हकलाकर अर्थात "आऊट आफ कन्ट्रोल " होकर बोला जब आप हकलाते हैं तब ऐसे ही बोलते हैं इसमें स्पीड बहुत अधिक स्पीड होती है और हमारे स्पीच आर्गन कन्ट्रोल में नहीं होते हैं अब इन्हें हम V.S. के द्धारा स्पीड और स्पीच आर्गव का CONTROL में लेकर क- क -क  बोला है। इसी प्रकार आप और भी अक्षर लेकर बोल सकते हैं। जब आप ऐसा अक्षर लीजिए ;- हकलाकर प्र प्र प्र प्र--V.S.  ट्र-ट्र-ट्र-ट्र बोलेंग ऐसे बहुत सारे अक्षर आप ले कर v . s . ls बोलना सीख सकते है।  यहाँ पर एक बात ध्यान रखिये कि प्रारंभ में,जब आप प्रेविट्स प्रारंभ करते हैं तब v . s . करते करते सही में हकलाने लगेंगे। इसमें डरने कि कोई बात नहीं हैं। इसके बाद आप कुछ शब्द भी ले सकते हैं। पहले सरल शब्द लीजिए जो आपको सरल लगते हो। जैसे
1 - '' कर '' शब्द को हकलाकर क क क कर हम बोलते हैं  V. S. में क क क क बोलेंगे।
2 - सर "  " स स स सर "  '' V.S . में स-स-स-स। .. सर  
3 - नर , , ,  न न न नर "  " V. S.
4 - मर म म मर V . S. म म मर इसी प्रकार आप अन्य सारे शब्द लेकर बोल।
यहाँ में फिर बोलना चाहूँगा कि शुरुआत में जब आप VOLUNTARY STAMMERING आर्थत V . S. करते हैं। जब आप कभी कभी वास्तव में अपना CONTROL खो देते हैं। और हकलाने लग जाते हैं। थोड़ा धैर्य रखें बार बार प्रैविटस करें बहुत जल्द आपकी आवाज कन्ट्रोल में हो जायेगी। इसके बाद आप कुछ कठिन शब्द भी लेकर प्रैविटस कर सकते है। आइये बोलते है। प्रेम शब्द को हकलाहट हमें   प्रे प्रे प्रेम बोलते हैं।  V . S . में प्रे प्रे प्रेम बोलना हैं। यहाँ पर हमने शब्द प्रेम के पहले अक्षर प्रे को चार बार CONTROL में रहकर V . S. किया और बोल प्रे-प्रे-प्रे प्रेम,यह बेहतर है घबड़ाकर, डर कर, स्पीड बढ़ाकर, हकलाकर प्रे प्रे प्रे प्रेम बोलने से इसी प्रकार आप केन, बेन कोन ट्रेन आदि शब्द बोल सकते है। पहले हम हकलाकर कर बोलेंगे इसके बाद   V . S. में बोल कर सुनाएगे। हकलाकर के केन V. S. में के-के-केन यहाँ पर 4 बार V. S. किया हकलाकर ब्रे ब्रे ब्रेन  V. S. में ब्रे ब्रे-ब्रे-ब्रे ब्रेन यहाँ पर 5 बार V. S. किया हकलाकर क्रो क्रोम V.S. में क्रो क्रो कोम यहाँ पर 3 बार V . S. किया हकलाकर ट्रे ट्रेन V.S.  में ट्रे ट्रे ट्रेन पर 2 बार V.S. किया इसी प्रकार आप बहुत सारे शब्द लेकर बोल सकते हैं। V. S. बदलते रहे जैसे मैंने शब्द के में 4 बार ब्रे में 5 बार कोम में  3 बार ब्रेन में       2 बार ही V . S . किया अर्थात पहले अक्षर को दोहराया अणेण को    हर बार बदलते रहे इसी प्रकार आप बहुत सारे अक्षर लेकर प्रविटस कर सकते हैं।                                                                                                                                                                                                                    
 जब इसकी प्रैविटस ठीक से हो जाये और शब्द हमारे विश्वास में आ गये हैं। तब आप कुछ कठिन बड़े शब्दों को लेकर प्रैक्टिकल कर सकते हैं। जैसे -अ अ आक्सीजन में V. S. में प प पयार्वरणV . S. में प प पर्यावण    कोलकताV . S. में को को  कोलकता इसी प्रकार आप अन्य शब्द लेकर बोलते रहें। हर बार V . S. कि संख्या अर्थात पहले अक्षर को दोहराने की संख्या को विश्वास के मुताविक बदलते रहना है। जब तक विश्वास ना आये तब तक दोहराते रहना है। जैसे ही पूरा विश्वास आ जाये कि अब मैं आगे बोल सकता हूँ। वैसे ही आप शब्द के अन्य अक्षरों को बोलना प्रारम्भ कीजिए। कभी-कभी ऐसा भी होगा कि आप ,शब्द के पहले अक्षर को जब आप दोहरा रहे हैं। अर्थात  V. S. कर रहे है। तब तो ठीक लग रहा है। लेकिन शब्द के अन्य अक्षरों को बोलने का विश्वास ही नही बन रहा हैं। तब आप अन्य अक्षरों पर भी V. S. कर सकते हैं। जैसे हमें बोलना हैं "मैहर " हम इसे हकलाकर म म म मैहर बोलते है। अब इसे V. S. में बोलना चाहते हैं। तब मैहर शब्द ,के पहले अक्षर मैं को V . S. करके मै मै मै तो बोल रहा हूँ। लेकिन आगे आने वाले अक्षर ह और र को बोलने का विश्वास ही नहीं बन पा रहा हैं। तब आप मैं और ह दोनों में V . S. सकते है मै मै मै ह् ह हरबोल सकते है। यहाँ मैं फिर बताना चाहता हूँ कि हकलाहट आपके कन्ट्रोल में नही होती जब कि V . S . आपके control में होती है। इसी प्रकार आप बहुत    सारे शब्द लेकर प्रैविटस कर सकते है। यहाँ पर आप महसूस करेंगे की हाई ब्लाकेज जो आपके नियंत्रण में नही हुआ करते थे अब वह आपके नियंत्रण में आ रहे हैऔर हार्ड ब्लाकेज साफ्ट बन रहे हैं आप निशिचत रूप से बेहतर फिन करेंगे। ठसके बाद छोटे छोटे वाक्य भी लेकर अभ्यास कर सकते है। जैसे मेरा नाम सूरज हैं। यह कोई वाक्य है। इसे अभी हम यदि बोलेंगे तो कही भी अटकने का डर रहेगा या अटक ही जायेंगे। या किसी तरह डर से आँखे चुरा कर छुपा कर बोलते है ,अब आप इसे V . S. में ऐसा बोलिए मे मे मेरा ना नाम सु सू सूरज हैं यहाँ पर ध्यान रखिये आँखे एक दम सीधी हो शब्द आपके कन्ट्रोल में हो ,चूकि आप पहले शब्द की प्रैविटस कर चुके हैं इसलिए आप हैं। आप महसूस करेंगे की मेमे मेरा ना ना नाम सू सू सूरज है। इसी प्रकार आप और बहुत सारे वाक्य लेकर प्रैविटस कर सकते है।                                                                                                                                                                                                                                                          रा राजा के घ घ्र घर तु तु तुलसी है।
 मै मैं मैहर म म मध्य प्रदेश में है। सू सू सूरज  इ इ स्टेमरिग से सेन्टर आ आप कौ कौन हैं मे मेरा ना नाम रा राजू हैं इस प्रकार आप बहुत सारे शब्द लेकर V. S. का प्रयोग कर सकते V. S. विश्वास के मुताबिक V . S. की संख्या बदलते रहे। प्रारम्भ में V . S. की संख्या अधिक रखिये। सरल अक्षरों या शब्द में V. S. अधिक करनी चाहिए। कई बार हम सोचते हैं, कि सरल में V. S. क्यों करू यह तो ठीक हैं,कि सरल शब्दों में V. S. करने से कठिन शब्द सरल बन जाते हैं। और कठिन शब्द भी सरल शब्दों की क्षेणी में आ जाते हैं। प्रारंभ में आप सरल शब्द में अधिक V. S. कीजिए। इसके बाद आप छोटी छोटी कहानियों को पहले मन में पढ़कर सारांश जानिये। इसके बाद कांच के सामने बैठकर कहानी पढ़िये। अधिकतर शब्दों में V . S. करते रहिए सरल में अधिकतर शब्दों में V . S. करते रहिए सरल में अधिक करना है। आँख सामने होना चाहिए। आइये एक कहानी V. S . में पढ़ते हैं।
मैं मैहर शहर ए एक ध धामिर्क श शहर है। य यहाँ प पर मा माँ श शारदा का म मंदिर है। य यह म मध्य प्र प्रदेश के स स सतना जि जिला में इ इसिथत है। य यहाँ प पर सू सूरज b इस्टेमरिंग के के केयर से सेन्टर इ इस्थापित है। इसी प्रकार आप अन्य कहानिया भी पढ़ सकते है। जल्दवाजी विल्कुल ना कीजिए। सबसे पहले अपने सामने अकेले में ऐसा कीजिए कांच या वीडियो कैमरा के सामने करें तो बेहतर रहेगा। धीरे धीरे आप पायेगे की आप की आवाज आपके कन्ट्रोल में आ रही है। और आपका विश्वास बढ़ने लगा है। यहाँ पर एक बात बताना चाहूँगा कि अधिकतर हकलाने वाले लोग रातो रात हकलाहट ठीक करने का प्रयास करते हैं जो संभव नहीं हैं। बोलना एक कला हैं ,जैसे गाना गाना कला है ,डान्स करना कला है कला को सीखना पड़ता है। समय देना पड़ता है। इसी प्रकार आपको दिमाग में बैठा लेना चाहिए कि जैसे गाना गाना धीरे धीरे व्यवित सीखता है। उसी प्रकार हकलाना भी धीरे धीरे ठीक होगा। अब आप इसे धीरे धीरे अपने जीवन में यूज करना सीखिये पहले अपने से छोटो के सामने V . S . का यूज करके बोलिये। और उसकी प्रतिकिया ध्यान से सुनिये जैसे मान लीजिए आपकी उम्र 25 वर्ष है आप किसी 7-8 वर्ष के बालक से बोलिये में मेरा ना नाम सू सू सूरज है। मैं फिर बताना चाहूँगा ,कि यह बेहतर है। ऐसे बोलने से मे मे मे मेरा न न न नाम सू सू सूरज है। अब आप देखिये कि ऐसा बोलने से सुनने वाला क्या प्रतिकिया करता है वह कह सकता                                                                                                                                                                                1 - आप हकलाकर क्यों बोलते है।
2 - हँस सकता है।
3 - आपको चिढ़ा भी सकता है।
4 - आप को घूर सकता है।
इन सबका आपको एक ही जबाब देना चाहिए पहले मुस्कुराइये इसके बाद कहिए मैं हकलाता हूँ। और इस पर विजय पाने का प्रयास कर रहा हूँ। आप पायेंगे की सारा माहौल आपके पक्ष में होगा। जिन सबालो से आप भाग रहे थे वे सबाल आप चुटकियों से साल्व कर सकते है। इसी प्रकार आप धीरे-धीरे अपना दायरा बढ़ा सकते हैं पहले अपने से छोटे लोगों से ही बात कीजिए। अपने से छोटे का मतलब शिक्षा में छोटा हो, उम्र में छोटा हो पैसे में छोटा रहन सहन में छोटा हो। अर्थात आपके दिमाग में यह हो कि मैं इससे बड़ा हूँ। किसी भी क्षेत्र में। वह आपसे छोटा ही माना जायेगा। रिक्से वाले से मोची से आप बात कर सकते हैं और कह सकते है।                                                                          
1 - सू सूरज से सेन्टर जा जाने का कि किराया कि कितना लो लोगे।                                                                                                                                     2 - मो मोची से -जू जूते सि सिलोगे। कि कितना लो लोगे। दोस्तो आप यदि यह लगातार करते है,तो आप पायेगे कि आपमें कन्ट्रोलिग आ रही है और विश्वास बढ़ रहा है। डर कम हो रहा है। जिन लोगों से आप से आप भागते थे अब उनमें दोस्ती होगी। आपको लगेगा कि दुनिया बहुत अच्छी है लोग मेरी बात सुनते है। जब आप छोटे लोगों में ओ करने मेंसफल होने लगे तब आप दुकानो में जाइये और छोटे छोटे वाक्य ओ में बोलना प्रारंभ कीजिए                                            
1 - ए ए एक प प रलेजी दि दीजिए।
2 - कि कितने की है।
3 - दु दु दुसरी क कम्पनी की है।
4 -  टा टाइगरवि विस्कुट है क्या ? इसी प्रकार आप दुकानो में जाइये और धीरे-धीरे ओ से बोलिए यदि कोई घूरता है या हसता है तो आप सरल सहज भाव से कह दीजिए कि मैं हकलाता हूँ। ऐसा कहने से हसने वाला व्यवित को सर्फ काट देगा। अर्थात वह हसने के बजाय सीरियस हो जायेगा और आप की आवाज सुनने के लिए तैयार हो जायेगा और आप कहने के लिय मानसिक रूप से तैयार होंगे। इस प्रकार आप धीरे धीरे अपनी हकलाहट पर मास्टरी प्राप्त कर लेंगे।                                                                                                                                                                         जो व्यवित अपनी आवाज बिगाड़ सकता है वह बना भी सकता है।  जैसे यदि कोई चोर चोरी करना जानता है तो सुरक्षा के उपाय भी जानता है। उसके द्धारा बनाई गई सुरक्षा व्यवस्था में चोर सहज ही चोरी नहीं कर सकता है । दोस्तो इस टेविनक को बाउ बॉउंसिंग ( Bouncing Voluntory Stammering आदि नाम से जानते हैं।                                                                                                                                                                                                                                                         

सरल भाषा का उपयोग

 सरल भाषा का उपयोग :-- जब आप यह कहे कि मैं हकलाता हूँ। तब आप सरल शब्द को सहज भाव से बिनासंकोच के कहें कि मै हकलाता हूँ। 
1 . जैसे यदि हम दोस्तों के साथ घूमने जाते हैं और थक जाते हैं ,तोसहज भाव से स्वीकार्य करते हैं और कहते हैं रुको दोस्तों मैं थक गया हूँ। हम कई बातों को सहज भाव से स्वीकार्य करते हैं जैसे -मैं प्यासा हूँ पानी लाओ !मैं भूखा हूँ खाना लाओ !मुझे बुखार है डाक्टर को दिखाओ !मुझे चोट लग गई हैं !मेरा सर दर्द कर रहा है !मेरा हाँथ टूट गया है !मेरे दात सड़ गये हैं !इन सभी को स्वीकार्य करने के बाद ही सब का हल मिल सकता है, और हम सहज भाव से सरल शब्दों में इन्हे कहते है।  और हल हमें मिलता है। इसी प्रकार यदि हम यह कह सकते ,कि मैं थोङा धीरे बोलता हूँ। क्योंकि मैं हकलाता हूँ। तब हमें अवश्य इसका हल मिलेगा और हम काफी हल्का महसूस करते है। ठीक ऐसे ही सोच जैसे -मै पानी पिता हूँ क्योंकि मैं प्यासा हूँ। मैं खाना खाता हूँ। क्योंकि मैं भूखा हूँ। इस प्रकार सहज भाव से सरल शब्द में कहना सीखिए मैं धीरे बोलता। क्योंकि मैं हकलाता हूँ ? । 

स्वीकार्य करने के कुछ नियम

 मैं आपको स्वीकार्य करने के कुछ नियम बता रहा हूँ
 1 . पहले आप अकेले मेँ कहना सीखिए कि मैं हकलाता हूँ। 1 - 2 बार कहने से काम नही चलेगा। हमेशा लगातार जब तक आप अच्छा फील नहीं करते हैं। तब तक यह कहते रहे , दिमाग को संदेश देते रहें कि मैं हकलाता हूँ। यहाँ पर एक निगेटिव एनर्जी आपके दिमाग में बनेगी और आप से कहेगी यह क्या बेवकूफी कर रहे हो ऐसा कभी नही होगा। यह संभव नही !यह कहना छोड़ दो आप इस निगेटिभ इनर्जी की विल्कुल न माने और लगातार यह कहते रहें कि मैं हकलाता हूँ। धीरे -धीरे यह निगेटिव इनर्जी बनना बंद हो जाएगी और आपको यह यह कहने में जरा भी संकोच नही होगा कि मैं हकलाता हूँ।
2 . जब यह संकोच खत्म हो जाय तब आप पेड़ो से , देवताओं के सामने ,गाय ,भैंस , बकरी ,दीवाल से कहें
3 . इसके बाद आप धीरे -धीरे अपने घर में पापा मम्मी या छोटे भाई बहन से आप बीच बीच में सहज भाव से कहें मैं हकलाता हूँ। मैं फिर बोलना चाहूँगा कि यह एक दो दिन का काम नही है लगातार कहते रहे। इससे आपको अंदर खुलापन आएगा और सारा दिन रटना नहीं हैं और न ही चिल्ला चिल्ला कर कहना है। दिन में दो तीन बार सरल सहज भाव से जैसे आप कहते हैं मैं प्यासा हूँ ,पानी लाओ। मैं  भूखा हूँ, खानालाओ। इस प्रकार बिल्कुल सरल भाव से कहें मैं हकलाता हूँ। यहाँ पर एक बात बताना और जरूरी हैं ,कि केवल मैं हकलाता हूँ। कहने से काम नही चलेगा बलिक थोड़ा हकलाना भी है। जानबूझ कर करें। इसे Voluntary stammering "मैं हकलाता हूँ। "ऐसा बोलें मैं मैं मैं हकलाता हू। यहाँ पर यह बात ध्यान में रखिए कि जब आप हकलाते हैं ,तब आपकी आवाज आपके कन्ट्रोल मे नही होती है। लेकिन जब आप स्वीकार्य करें तब सहज सरल भाव से स्पीड स्पीच ऑर्गन को कन्ट्रोल करके कहे मैं मैं मैं हकलाता हूँ।  voluntary stammering के बारे में आगे विस्तार से बताया जायेगा।
4 . जब आप अपने आप से ,घर मेँ ,छोटे बच्चो से बिना झिझक शर्म संकेज आत्मग्लानी के यह कहने मे सक्षम हो जाये कि मैं मैं मैं ह ह ह हकलाता हूँ। तब आप अपने अच्छे मित्रो से भी कहना प्रारंभ कीजिए। और बीच -बीच में voluntary stammering करते रहें। जैसे में मेरा नाम सू सू सूरज हैं। आ आपका ना नाम क्या क्या हैं। यह आपको थोड़ा मुशिकल और निगेटिव फील हो सकता हैं। लेकिन करते रहें अवश्य जीत आपकी होगी।                Acceptance के फायदे       जब आप किसी से कहते हैं, कि मैं हकलाता हूँ। तो आपका मन कहता है। अब मैं क्यो छुपाऊ !अब तो इसे पता चल ही गया हैं। कि मै हकलाता हूँ।
 जब कभी आप दूसरी बार उस व्यवित से मिलते हैं जिसके सामने आपने कहा था कि मैं  हकलाता हूँ। तब आपका मन कहेगा पिछली बार मैं इनसे कहा था कि मैं हकलाता हूँ। इन्हें अवश्य याद होगा अब मैं क्या छुपाऊ। चाहे वे भूल ही क्यो न गये हों।
5 . हमारे शरीर में कार्य करने कि बहुत सारी एनर्जी होती है और हम शब्दों को बदलने ,शब्द को आगे पीछे करने छुपाने में खर्च कर देते हैं और अन्य कार्यो में पीछे रह जाते हैं। स्वीकार्य करने से आपकी एनर्जी बेकार खर्च नही होती। और आप हर काम मे सफल होने के लिए तैयार रहते हैं। 4 . स्वीकार्य करने के बाद टेन्शन कोध हीन भावना में कमी आती हैं। और
  पिंजड़े मे बन्द तोता उड़ने के लिए तैयार                                                                    

स्वीकार्य करना कठिन

                                                                स्वीकार्य   करना कठिन।
यह सच है कि हकलाने वालो के लिए यह कहना कि "मैं हकलाता हूँ "यह आसपास से तारे तोड़ने जैसा ही है। हकलाने वाले सब करने को तैयार होते है। पर स्वीकार्य करने में तैयार नहीं होते हैं। उनको संका रहती हैं कि यदि मैं कह दिया कि मैं हकलाता हूँ ,तो मेरे दोस्त मेरी हँसी उड़ाएगे मेरी नौकरी छूट जाएगी ,मेरी शादी नही होगी ,मेरा सलेक्श्न नहीं होगा ,मैं बरबाद हो जाउंगा। इसी प्रकार सोचते है। हकलाने वाले अधिकतर व्यवित उस दवाई की खोज में रहते हैं ,जिसे खा कर जल्दी ठीक हो सकें। किसी को पता भी नही चल सके। और बहुत से लोग पूरी जिन्दगी दवाई खोजते हैं और अधिकतर व्यवित उस दवाई की खोज में रहते हैं जिसे खा कर जल्दी ठीक हो सके। और बहुत से लोग पूरी जिन्दगी दवाई खोजते है और जिन्दगी में  दवाई नही मिलती। सच्चाई यह है जब तक आप दवाई खोजते रहेंगे तब तक हकलाहट आपको परेशान करती रहेगी। जिस दिन आप दवाई खोजना बंद कर देंगे उसी दिन आप हकलाहट पर विजय प्राप्त कर लेंगे।  एक मेरे मित्र हकलाहट से पीड़ित थे। उन्होंने कहा वीं ,के ,सिंह आप लोगों की सोच नही बदल पायेगे आप भगवान नहीं हैं।  यदि लोग अपनी सोच बदल लेते तो एक डाक्टर का लड़का कैन्सर से नहीं मरता ,एक प्रिन्सिपल का लड़का अनपढ़ नहीं रहता ,एक पुलिस वाले का लड़का चोर नहीं होता मैंने कहा ये सच है मेरे मित्र कि मैं लोगों कि किस्मत और सोच नही बदल सकता लेकिन किस्मत और सोच बदलने कि तरकीब यानी तरीका अवश्य बता सकता हूँ।      
   "ये सच है कोई किसी तकदीर नही बदल सकता। पर ये भी सच है कि ,कोई तकदीर बदलने की तरकीब जरूर बता सकता है। "
 जब लोगों को चोरी करने में ,बुखार आने में, चोट लगने में फून करने में शर्म नहीं आती तो हमें यह कहने में , शर्म बिल्कुल नहीं आती कि मैं हकलाता हूँ। 
     स्वीकार्य करना हकलाहट पर विजय प्राप्त करने की पहली सीढ़ी हैं "
एक हकलाने वाला  व्यवित ने कहा सर मेरे समझ में नही आया यह कैसे संभव हैं !मैंने बहुत समझाया पर बार बार वह यही कहता था।  सर कोई दवाई या सरल तरीका बताइये।  जिससे हकलाहट ठीक हो जाये मैंने कहा मित्र एक बात बताओ तुम्हारे यहाँ भैंस है उसने कहा हा हा है। मैंने कहा एक बात बताओ भैस हरी घास खाकर सफेद दूध कैसे देती है। तब उसने कहा यह तो प्राकृति का नियम है। तब मैंने कहा यही तो मैं तुमको एक घंटे से समझा रहा हूँ। यह प्राकृति का नियम है। की स्वीकार्य करने के बाद हकलाहट का डर कंट्रोल होने लगता है। तब यह बोला नही सर मेरी नौकरी चली जाएगी और लोग हमें जीने नहीं देंगे मैं इजीनियर यह नही कह सकता। मैंने कहा एक बात बताओ इजीनियर साहब आप हकलाहट को 25 वर्षो से छिपा रहे है कितनी बार छिपा पाये है। आपके ब्लाकेज बहुत ज्यादा है। यह छुप ही नही सकते !तब उन्होंने कहा नही मैं छुपा लेता हूँ। मैंने कहा हकीकत यह हैं कि जो व्यवित आपसे 1 - 2 बार मिल लेता है।  वह यह जानता है कि आप हकलाते हैं। हकीकत यह है। लेकिन यह कहता इसलिए नही है कि आपको बुरा लग जाएगा और आप जीवन भर यही समझते हैं कि इसे पता ही नही है कि मैं हकलाता हूँ। और आप जीवन भर छुपाने के टेन्सन से लड़ते रहते हैं। हारते रहते है , हारते रहते है ,रोते रहते हैं ,अपने आपको कभी -कभी गाली भी देते रहते है। यदि आपको ये सब करते रहना अच्छा लगता है तो हमारी शुभकामनाऍ आपके साथ है। लेकिन मेरे मित्रो यदि आपको ये सब करना बेकार लगता है और आप इसमे मुवित चाहते हो तो मेरी बात मानो स्वीकार्य करो और. खड़े हो जाओ।
" असफलता एक चुनौती है स्वीकार्य करो देखो क्या कमी रह गई है और सुधार करो। जब तक सफल न हो नींद चैन को त्यागो तुम संघर्षो का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ! कुछ किये बिना ही जै जै कार नहीं होती। कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती।"

"Acceptance "


                                              "Acceptance "                                                                                  
 दोस्तों आज मैं बताउँगा की हकलाहट क्या है।  हकलाहट पर विजय पाना हो या किसी अन्य कार्य में !आपको पहले स्वीकार्य लोग कार्य में करते है। और सफल होते है। 
1 . डाक्टर ; सबसे पहले वह स्वीकार्य करते है कि हाँ।  मैं डॉकटर हूँ। तब लोग उसके पास आते है।  और चेकप करवाते हैं। यदि डाक्टर स्वीकार्य न करे तो उसकी डाक्टरी शायद नही चलेगी।
2 . मजदूरः यदि कोई मजदूर स्वीकार्य करता है कि हाँ मैं मजदूर हूँ तभी उसे काम मिलता है और उसकी प्रग  ति होती है।
3 .एट्स का मरीज ; मरीज किसी भी वीमारी का हो उसे पहले स्वीकार्य करना ही पड़ता है कि हाँ मैं इस रोग से पीड़ित हूँ ,तभी घर वाले समाज वाले लोग डाक्टर को दिखाते है और मरीज ठीक होता है ,यदि विमारी है तो स्वीकार कीजिए और उचित सलाह लीजिए।
4 . गूँगे -बहरे -अन्धे ; ये लोग भी पहले स्वीकार्य करते है ईकि हाँ मुझे ये समस्या है इसके बाद ही आगे बढ़ पाते है।  और ऐसे बहुत से लोगों को देखा होगा जो विकलांग हैं , लेकिन जीवन में ये नही कहता कि सभी विकलांग व्यवित, आगे बढ़ रहे है। लेकिन यह सच है कि जो अपनी समस्या को स्वीकार्य किया है और आगे बढ़ने का सुधार करने का , बदलाव करके सफल होने का संकल्प करे हैं , वह अवश्य ही आगे बढ़े हैं।

                                          

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

मैं एक अजीब कुत्ते का मालिक हूँ।

            Stammer dog को पालतू बनाइए।
मैं एक अजीब कुत्ते का मालिक हूँ।  कुत्ते का नाम हैं stammer dog। मालिक कहना शायद गलत हैं, क्योंकि जब मैं छोटा था तो यह कुत्ता मुझ पर थोपा गया था।  


यह कुत्ता हमेंशा मेरे साथ एक चिपकुकी तरह फिरता रहता था;  खासकर, जब भी मैं दुनियाके और लोगोंसे मिलने जाऊँ।  शायद वो मेरी बराबरी करना चाहता था -- जब भी मैं बोलने जाऊं, वो भौंकना चालु कर देता। शर्म के मारे मैं जमीन में गर जाता।  मैं उसे चुप करने को कहता तो वह चुप होने का ढोंग करता; किंतु मेरे अगले शब्द शुरू करने पर वह फिर से भौंकना चालु कर देता।  सुननेवाले तंग आ जाते और उनके reactions देख कर मैं भी शर्म के दलदल में और भी फंसता जाता।  मैं खुद को, औरों को, और ज़िन्दगी को कोसता। अपनी यह हालत पर मुझे तरस आता और प्रार्थना करता कि कैसे भी करके इस stammer dog को मेरी जिंदगी से हटा दो।  


यदि आप ऐसे stammer dog के मालिक है तो आपके लिए दो महत्वपूर्ण खबर हैं -- एक बूरी और एक अच्छी।  बूरी खबर: यह कुत्ता हमारा जीवनभर का साथी है।  अच्छी खबर: हर एक stammerer इस कुत्ते को पालतू बना सकता है।  पालतू बनाने का अर्थ यह हुआ कि stammer dog हमारे जीवन विकास में अवरोध लाना बंध कर दे।   सालों तक मैं गलत उद्देश्य के पीछे भागता रहा:  यह कुत्ते को मेरी जिंदगी से हटा देना।  जब से मैंने उसको पालतू बनाने के लक्ष्य पर ध्यान देना शुरू किया है, ज़िन्दगी सरल सी हो गयी है।  मेरा अनुभव मैं आपके साथ बाँटना चाहूंगा।  


Stammer dog शांत रहने के काबिल, चिंतारहित अभ्यास कि आवश्यकता  
  • जब मैं किसीके बारें में सोचे बगैर, अकेलेमें, सिर्फ अपने आप से बात करता हूँ तो stammer dogनहीं भौंकता।  मुहँ, जीभ, फेफड़े, इत्यादि बड़ी आसानी से एक दूसरे का साथ देकर फ़्लूएंट आवाज़ बनाते हैं। इससे यह साबित होता हैं कि उनमें कोई खामी या रुकावट नहीं है।  
  • इस कुत्ते में भौकने की ताकत कहाँसे  आती हैं ? उसे मैं ही भौंकनेवाला खाना देता हूँ।  ग्लानि भवित हो कर मैं खुद को और औरों को कोसता रहता हूँ।  
    मैंने उसे सात्विक आहार देना शुरू किया।  जैसा भी है, वो मेरा कुत्ता है।  जिस तरह भी हूँ, मैं ठीक ही हूँ।  उसका अस्तित्व मैंने स्वीकार कर लिया तो उसमें बड़ा बदलाव आ गया, उसका भौंकना धीरे धीरे कम होता गया।  
  • यह कुत्ता भौंकना बंध भी करना चाहे तो कैसे करें, मुझे  उसकी आदत जो हो गयी है।  किसी भी आदत से छुटकारा पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।  कुछ techniques के लगातार अभ्यास से मुझे बहुत फायदा हुआ:
    • तिन साल के बच्चें को कहानी सुनाते हो ऐसे मुंह खोलकर, हर एक शब्द को लम्बाकार उच्चार करना।  (prolongation with clear enunciation, story telling mode)
    • जो भी शब्द या अक्षर से डर लगता है -- उसको अलग अलग परिस्थिति में मनपसंद technique इस्तेमाल करके दोहराना।  डर  से मुक्त होना है।  
    • मनपसंद समाधी द्वारा मन और दिमाग को शांत करना।  कुत्ता भी शांत हो जाता हैं।  
यह अभ्यास सहभागियों के साथ करने से ज्यादा लाभ हुआ, motivation भी बना रहता था।  


प्रभावी संचार पर ध्यान, प्रेक्षको प्रति सहानुभूति
  • मैंने कमसे कम पांच स्पीच थेरेपी ली (ऊपर बतायी गयी techniques से फायदा हुआ। ) उनमें से कुछ थेरेपी ऐसी थी कि बोलते समय मेरा ध्यान stammer dog के बजाय किसी और चीज़ पर लगा दे।  जब तक दिमाग को बेवकूफ बना सके, परिणाम आया; उसके बाद फिर वहीँ के वहीँ।  दिमाग का ध्यान कहीं लगाना ही है तो क्यों न उसे प्रभावी संचार पर जमाये रखें ?
  • व्यक्तिगत तौर पर मुझे इस दुनिया के लोगों को बहुत कुछ कहना है।  जब मैं लिखता हूँ तो ध्यान देकर बड़ा प्रयास करता हूँ कि पढनेवालों को मेरी बात संपूर्ण रूप से समज में आए।  बोलते वक्त भी मुझे यही बात पर जोर देना है।  
    • शब्द या वाक्य अदल-बदल कर मैं क्यूँ अपने प्रभावी संचार प्रयास को व्यर्थ जाने दूँ ?  
    • मेरी पूरी कौशिष रही है कि मैं सामनेवालों से आँख मिलाकर बात करूँ।  
  • थोड़े बहुत सुननेवाले मुझ पर हसतें है तो भले हँसे।  उन पर ध्यान देकर मैं औरों को कैसे नज़र अन्दाज़ कर सकता हूँ जो मुझे ठीक तरह से सुनना और समझना चाहते हैं?
    • सुननेवालों को मेरे secondary symptoms देखकर दुःख होता हैं और मेरी बात समझने में तकलीफ होती हैं।  मुझे भी उनसे कोई फ़ायदा नहीं होता।  अभ्यास कर मैं उन्हें हटाने कि कोशिष  करता हूँ।
    • बोलने से पहलें या बोलते समय block हो जाता हूँ तो, अपना अहम् छोड़कर, अपने प्रेक्षकों कि सुविधा ध्यान में रखते हुए, मेरी आजमायी हुई  techniques इस्तेमाल करके मेरी बात जारी रखता हूँ।  कभी ज्यादा रुकावट हो गई तो -- रुक के लंबी सांस ले लेता हूँ, जरा सा हँस देता हूँ, या सॉरी कहके अपना बोज़ हलका कर देता हूँ -- और सब कुछ भूल कर नए सिरे से शुरुआत करता हूँ।  ज्यादा तर प्रेक्षक इसे समझ सकते हैं और मन ही मन मेरी दाद देतें हैं।  
  • अपने मन की  बात पूर्ण रूप से समझा सकने पर एक आनंद सा आता हैं।  उसके सामने बाकी सब गौण लगने लगता हैं।  


Happily Ever After …
मैं और मेरा पालतू stammer dog बड़े मझे से ज़िन्दगी गुज़ारते हैं।  कभी वो मुझसे शरारत करता है तो कभी मैं उस पर हँस देता हूँ।
कोई भी stammerer अपनी महेनत, लगन, और धीरज से अपने stammer dog को पालतू बना सकता हैं। य़ह मेरा वादा है आपसे !

बुधवार, 16 सितंबर 2015

क्या हकलाहट की 100 %ठीक कियाजा सकता हैं ?

               C. क्या हकलाहट की 100 %ठीक कियाजा सकता हैं ?; 
यह कहना गलत  होगा की हकलाहट को 100 %ठीक किया जा सकता है, यह कहना ज्यादा अच्छा होगा कि हकलाहट के डर को 100 %कंरटोल किया जा सकता हैं और पूर्णतः विजय पाया जा सकता हैं। दोस्तों हकलाहट हमारी समस्या नही हैं। जो डर पैदा होता हैं ,वह  हमारी वास्तवित  समस्या हैं। जैसे आँखो से आँखे मिलाकर बात करना ,अपनी बात को तोड़ -मरोड़ कर कहना , पर्यायवाची शब्द का उपयोग करना ,आँख बंद कर लेना ,ओठ चिपका लेना मुँह अधिक खोलना ,पैर पटकना हाथ हिलाना ,गर्दन हिलाना आदि ये हमारी समस्या हैं। इस पर 100 %काबू पाया जा सकता हैं और जब ये 100 %कंट्रोल हो जायेगे तब हकलाहट तो अपने आप काबू हो जायेगी। हकलाहट को अपना नौकर बनाना सीखना हैं। इसे अपने आप बस मे करके सखना ही उचित है। इसे हम दुश्मन मानते हैं। यदि आप दोस्त मानने लगेंगे तब आप पायेगे कि जितना अभी हकलाहट आने पर आपको खुशी होंगी। बस आवश्यकता हैं दोस्त बनाने की, अपना नजरिया बदलने की। आप अपना नजरिया हकलाहट के प्रति बदलिये। आप पायेगे कि ये दुनिया बड़ी सुहाबनी हैं.लोग आपकी आवाज सुनना चाहते है। अपने मिलना चाहते हैं,आपको प्यार करते के बाद आपकी दुनिया अलग होंगी और जो हकलाहट आपको सताती है वही आपको आगे बढ़ायेगी। आपको ईश्वर समस्य व्यक्ति से कुछ अधिक दिया हैं। वह अधिक हैं हकलाहट। इसे हम समझ नही पाये और दुश्मन मन गये। इसे भगवान का दिया गिपट मानिये कि ईश्वर आपको बहुत प्रेम करता हैं।
                                                        
    SMS से उन बातो को पूछिये जो इस परस्पेक्ट्स में न लिखी हों     


कुछ हकलाने वाले बहुत तेज क्यो बोलते है ? (अपनी समस्या को नकारते क्यो है) ?

B कुछ हकलाने वाले बहुत तेज क्यो बोलते है ?   (अपनी समस्या को नकारते क्यो है) ?
बच्चे जब दो तीन वर्ष की आयु में बोलना शुरू करते है तब हकलाना या तुतलाना एक सामान्य प्रकिया मानी जाती है ,पांच छै वर्ष की आयु तक यह प्रकिर्या धीरे -धीरे कम हो जाती है। बच्चे का यह हकलाना बहुत ही सरल होता है। यानि इसमें न तो कोई संघर्ष छिपा होता है और न ही इसमे कोई प्रतिकियात्मक व्यवहार दिखाई पड़ता है। वयस्क हकलाने वालो की भावनात्मक मुशिकलें छुपाने की प्रवृतियाँ व अन्य प्रतिकियाए बच्चे में इस उम्र में दिखाई नहीं पड़ती मगर धीरे -धीरे जब ये हकलाहट के साथ बड़े होते है तो सामान्य विकास की यह प्रकिर्या आसामान्य भावनाओं प्रतिर्कियाओ और आंतरिक संघर्शो से जुड़ती चली है। भाई -बहन ,अन्य बच्चे ,माता -पिता ,शिक्षक जाने अनजाने इन बच्चो में नकारात्मक भावनाओ को जन्म देते है। बोलना ,अन्य बच्चो के साथ खेलना आदि एक अप्रिय अनुभ्व बनते चले जाते है। बच्चे के अनतभरन में शब्दों व सिथितियो का डर इतना गहरा बैठ जाता है कि बच्चे के लिये बोलना मुशिकल हों जाता है। कभी -कभी बच्चा वाक्य के बीच में ही अटक जाता है। लम्बे समय तक संघर्ष करने के बाद भी  कुछ बोल नही पाता हैं। बच्चा ऐसे ब्लॉकेज को बहुत ही शर्मनाक चटनाओं के रूप में देखता हैं। बच्चा अपनी ऐसी समझ अपने इर्द -गिर्द के लोगों की प्रतिकिया के आधार पर बनाता हैं। बहुत बार सुनने वाले ,इन बच्चो की बात को बीच में ही काट देते है। इस से बच्चे का अवचेतन जल्दी से छुट्टी पाना चाहता है लेकिन यह जल्दबाजी ही उच्चारण में और मुशिकलें पैदा कर देती है। एक बच्चे के लिये यह सबकुछ गहरे मानसिक तनाव को जन्म देता है। इस हालात में बच्चे के सामने एक ही विकल्प होता है कि अपने आप को समस्या से अलग करके देखे और समस्या को अकरे। चूकि हमारे समाज में एक तो इसको स्वास्थ्य समस्या माना ही नही जाता और वैसे भी स्पीच थैरेपी पार्यः कम शहरो में ही उपलब्ध है। इसीलिये बहुत से हकलाने वालो के लिये समस्या का नकारना ही एकमात्र विकल्प बचता है। वस्तुतः वें अगर खुलकर अपनी समस्या को स्वीकार करे इसके बारे में दोस्तों व परिवार से बात कर सके तो वो बहुत से तनाव व दुशिचन्ताओ से आसानी से मुवित पा सकते है। मै प्रायः सुनता हुँ क़ि सर हमे या हमारे बच्चे की वैसे
थोड़ी समस्या है,बस 2 -3 शब्द में अटकता है। बस जब जल्दी -जल्दी बात करता है तभी अटकता है ,बस टेन्शन में होता है तब अटकता है बस जब अचानक बोलता है तब अटकता है। ऐसे कई सवाल डेली सुनने को मिलते है। मैं बताना चाहूँगा कि हम और हमारा समाज इसे हास्य रूप में देखता हैं ,इसीलिये हम इसे नकारते हैं और बस थोड़ी सी समस्या कहते हैं जबकि वास्तविकता यह कि यह आपकी थोड़ी सी समस्या नही है बलिक आपका पूरा जीवन ही हकलाता हैं। इसे वदलना हैं आपको क्लिक हियर 

लोग क्यो हकलाते है ?

                                              9 . क्या आप जानना चाहते है ?  

 A- लोग क्यो हकलाते है ?
इसे महज एक बुरी आदत मानना गलत है सच्चाई यह है कि यह एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है,जिसमे कुछ ध्वनियों का उच्चारण न सिर्फ मुश्किल कई बार असंभव हों जाता  है। जब मसितष्क से ध्वनि के लिये विहुत तरंगे नही पहुचती है तो हमारा कंठ पिछली ही ध्वनि को दोहराता रहता है कभी -कभी गला पूरी तरह ब्लाक हो जाता है ,न ही हवा बाहर निकलता और न ही ध्वनि। एक हकलाने वाले व्यवित के शब्दों में जैसे कि जबड़ा जुबान ,मुँह और कंठ सभी एक पल को जकड़ गये है ,परिणामस्वरूप व्यवित शब्दों को बाहर धकेलने के लिये एक संघर्ष शुरु कर देता है। यह संघर्ष प्रायः चेहरे सिर व बदन में दिखाई पड़ता है जैसे आँखो का झपकना ,चेहरे का एकतरफ ऐठ जाना ,सिर व हाथों का हिलाना ,पाँव पटकना आदि। शुरू में हमने सम्भवतः इन व्यवहारों का प्रयोग था ब्लाकेज से बासर समस्याओं को देती है। मसितष्क के स्केंन द्धारा अध्ययन से पता चला है कि एक हकलाने और एक सामान्य व्यवित जब चुप रहते है, तो उनके में कोई अंतर नही होता लेकिन जब हकलाने वाले बोलने लगते है तो उनकी बाया मसितष्क भय चिंता व अन्य भावनाओं से जुड़ा होता है। कुछ वर्षा पहले तक यह माना जाता था कि बोलने की प्रतिकिर्या पर नियंत्रण करने के लिये दाए व बाए मसितष्क पर संघर्ष होता है जिसके करण हकलाने वाले अटकते है पर अब यह माना जाता है कि दाए मसितष्क का सकिर्य हो जाना हकलाने का कारण नही है बलिक संभवतः उसका परिणाम है। से जुडी तमाम नकारात्मक भावनाएॅ जैसे डर ,शर्म ,आदि बोलने के क्षणों में एक एक सकिय हो जाती है और स्केन के दौरान दाए  मसितष्क की हरकत के रूप में दिखाई पड़ती है। हम बोलते समय अपने शब्दों को जैसे डर हम बोलते समय अपने शब्दों को जैसे सुनते है और गले और मुँह की मांसपेशियों को करते हुये जैसा महसूस करते है ,इन दोनो के बीच में तालमेल मसितष्क का एक विशेष आग बैठता है जिसे सेन्ट्रल ऑडिटरी पोर्सेसिंग एरिया कहते है। यह अंग हकलाने के दौरान निषिक्रय हो जाता है। अन्य शब्दों मे अपने शब्दों को चुनना और उसके अनुसार उच्चारण की विभिन्न मांस शेश्यो का तालमेल बैठाना गड़बड़ा जाता है। कुछ बैज्ञानिक बेसल गैगलिया (काडेट न्युबिलयस )में डोपामिन की अधिक्ता को एक कारण मानते है। मसितष्क का यह अंग हमारे विचारेको ध्वनि में बदलने के लिये उपयोग किया जाता है।   

8 हकलाने वाले व्यवित के विभिन्न चरण।


                                        8 हकलाने वाले व्यवित के विभिन्न चरण
1-  पहला चरण  -छोटी उम्र में बच्चा अपनी  पर विशेष ध्यान नही देता है लेकिन जैसे जैसे वह समझदार व बड़ा होता है ,अपनी समस्या समझने लगता है ,बच्चा यदि नही भी हकलाता लेकिन यदि उसके दोस्त घर के मोहल्ले में लोग बार बार बोलते है कि तुम तेज बोलते हो ,तुम्हारी आवाज समझ में नही आती ,धीरे -धीरे बोला करो ,आरा  म से बोला करो तो बच्चे के मन में धीरे -धीरे यह अनुभव होने लगता है कि मैं हकलाता हूँ। यही पहला चरण कहलाता।
 2-दूसरा चरण-अब वह समाज के सामने आता है उसकी हॉकी उड़ाई जाती है। लगातार अटककर बोलने से बच्चे के दिमाग में यह बात आ जाती है कि यह हकलाता है। अथार्त बच्चे के दिमाग में हकलाने का दुगर्मी भय आ जाता है। यही दूसरा चरण कहलाता है।
3-तीसरा चरणइस भय को हम और आप स्टेमरिग सायकोलॉजी कहते है। उम्र बढ़ने के साथ साथ बच्चा हकलाता जाता है तथा उसकी सायकोलॉजी बढती जाती है कुछ बच्चे तो बड़े होने पर भी अपनी समस्या पर विशेष ध्यान नही देते है ,उनमें हकलाने की गहराई (साइकोलॉजी )अधिक नही बढ़ती है। धीरे -धीरे ठीक होने की संभावना भी होती है। हर माता -पिता और अन्य सभी व्यवित्यों सेअनुरोध है कि हकलाने वाले को बार -बार उसको न टोके और न ही उसकी हाँकी उड़ाये। इससे उसकी संयकोलॉजी कम होगी। जब बच्चा समझदार हो जाता है ,अपनी समस्या पर विशेष ध्यान देने लगता है। जिस शब्द पर वह अटकता है ,उस शब्द में बोलने की जब भी यहाँ आये तब 
  स्पीड बढ़ जाती है और वह उसे ही कठिन समझने लगता है। इसतरह वह अपने दिमाग में कुछ कठिन अक्षर छटलेता है। यही तीसरा चरण कहलाता है।
 4- चौथा चरण- अब वह धीरे -धीरे स्पीच आग्रन को सिकोड़ कर आँखे दबाकर मुँह अधिक खोल कर बंद कर बात करने लगने गता है। इसको चौथा चरण कहते है। 
5- पांचवा चरण- इसको बाद यदि आपकी मेमोरी कमजोर बोलते समय मुँह से थूक आना ,आँखे मिलाकर बात न कर पाना एवं उपरोक्त सभी लक्ष्ण पाये जाने वाले लोगों को पांचवा चरण कहलाता है।
 6- छठवे चरण जब आप पांचवे चरण से छठवे चरण में प्रवेश करते है तो कई डाक्टरों ,स्पीच थैरपिस्टो ,साइकोलॉजिस्टो से परामर्श करके थक जाते है और हारकर बैठ जाते है। लगभग सलाहकार यही सीखते है कि धीरे -धीरे बोला ,रिलैक्स होकर बोलो लेकिन आप यह रियल लाइफ में नही कर पते है। कुछ दिन करते है ,कुछ दिन बाद फिर उसी ढर्रे में चलने लगते है ,अब आपके दिमाग में सभी स्पीच थैरपिस्ट ,डाक्टर्स ,साइकोलॉजिस्ट का विश्वास भी टूटने लगता है। इस स्टेज की बेरोजगारी ,आथिर्क तंगी ,सामाजिक -पारिवारिक परिसिथतिया काबू में नही हों होन से अधिक तनाव महसूस होता है। इस सिथति से गुजरने वाले व्यवितयो को छठवे चरण का हकलाना होता है। 
आप सभी घर वाले जानते है कि हमारा बच्चा जल्दी बोलता है और इसीलिये अटकता है तथा को धीरे -धीरे बोलने के लिये भी बार -बार टोकते है लेकिन अब बच्चा चाहकर भी धीरे नही बोल सकता क्योंकि आदत पक्की हों चुकी है। धीरे बोलने या शुध्द बोलने के लिये आप कहेंगे तो बच्चे के दिमाग की सायकोलॉजी और बढ़ेगी। Respiration जाता है।  कमजोर है ,स्पीच फ़ास्ट है ,श्वास व स्पीच का तालमेल बिगड़ा है तथा दिमाग में साइकोलॉजी है। ये सभी कमजोरिया सेन्टर के नियमों का पालन करके ठीक हो सकती है। who के अनुसार माँ के बड़े बच्चे में 80 %एवं अन्य बच्चे में 20 %यह रोग होता है। यह रोग लड़को में अधिक तथा लड़कियों में कम होता है। जो व्यवित बाएँ हाथ से मुख्य कार्य जैसे लिखना ,खाना ,मारना आदि करते है ,उन्हें हकलाहट की प्राब्लम अधिक होता  है
                                   जो भी लक्षण आप से मिलते हो उसे अंडरलाइन करके साथ लाना है।
                                                     

हकलाना निम्न कारणों से होता है

   7 हकलाना निम्न कारणों से होता है
1 हकलाने वाले के साथ में रहकर नक़ल करने से या उसके जैसे बोलने की कोशिश करने से। 2 घर परिवार के सदस्यों, स्कूल कॉलेज में टीचरों या अन्य किसी के डाटने से भयभीत होने से। 3 ,शारीरिक कमजोरी आने से या लम्बी बीमारी के ग्रस्त होने से। 4 किसी दौड़ने वाले खेले से या दौड़ते- दौड़ते बाते करने से। 5 किसी दुघर्टना या कोई हादसे होने से। 6 यौवन संबंधी घातक गुप्त रोग ,मानसिक रूप से पीड़ित होने पर। 7 कमजोर आई ,क्यू ,या ऑटिज्म के कारण
   

तुतलाना (Lisping ) क्या है

                                         6 तुतलाना (Lisping ) क्या है     
   जब मानव  की श्वास तो ठीक रहता है लेकिन जीभ अपनी आदत बिगाड़ लेती है (वास्तव में जीभ आदत नही बिगड़ती बलिक दिमाग जीभ की आदत बिगड़ता है )तब आवाज तो सही आती है लेकिन उच्चारण गलत हो जाते है। 
जैसे -क को ता ,ख को थ ,रोटी को लोटी ,टमाटर को तमतार ,भाटा को भाता , सड़क को सरक बोलने लगता ही उसे तुतलाना कहते है 
वास्तव में  आप से बोलते आता है लेकिन बोलना भूल चुके है। तुतलाना जीभ ,गला दांत एवं ओठ के गलत किर्या कलाप से होता। जब बच्चा छोटा रहता है तब वह तुतला कर ही बोलता है। माता -पिता को तोतली भाषा सुनकर बहुत अच्छा लगता है। यदि माता -पिता बच्चे को प्यार से बीच -बीच में याद दिलाते रहे कि बेटा तुतला कर मत बोलो अथार्त  रोटी को लोटी मत बोलो। शुध्द रोटी बोलो तब बच्चा धीरे धीरे सुधार करने का प्र यास करता है और ठीक बोलने लगता है लेकिन यदि माता -पिता बच्चे की तोतली भाषा सुनकर बहुत तारीफ करते है तो बच्चा सोचता है कि मै ठीक बोलता हूँ  तभी तो पापा -मम्मी  मेरी तारीफ कर रहे है और बच्चा तोतली भाषा को सुधारने का प्रयास नही करता। धीरे धीरे बच्चा रोटी को लोटी यानि तुतलाकर गलत उच्चारण करने का आदि बन जाता है। जब कुछ बड़ा होता है तब माता -पिता की समझ मे आता है  की बच्चा तुतलाकर बोल रहा है। अब माता -पिता बच्चे को डाटना प्रारम्भ करते है कि शुध्द बोलो लेकिन अब बालक चाहकर भी शुध्द उच्चारण नही कर पाता क्योकि 100 % गलत बोलने का बच्चा आदि बन चुका है  अब यदि माता -पिता ज्यादा डाटेंगे तो बच्चा तुतलाने के साथ साथ बच्चा अटककर यानि हकलाकर भी  बोल सकता है। जिन अक्षरों शब्दों का उच्चारण गलत करते है उनसे हरदम बचने का प्रयास करते है।  

यदि आप तुतलाना को ठीक करने के लिए किसी  चमत्कारिक इलाज या मेडिसिन  सर्च कर रहे है तो शायद आप का टाइम और पैसा बर्बाद होने के आलावा कुछ नहीं होगा क्यों की यह  बीमारी नहीं है  , जैसे आप  डांस  सिखने  यदि के   लिए  किसी  चमत्कारिक इलाज या मेडिसिन  सर्च कर रहे है तो शायद सही नहीं होगा .
इसका  ट्रीटमेंट स्पीच थेरेपी में बेटर है  तुतलाना  100  ठीक होता है   इसको ठीक करने से  पहले  स्पीच ओर्गन्स  का प्रॉपर डायग्नोसिस करना ,आई  क्यू  लेवल ठीक होना   मेन्टल  डिसऑर्डर नार्मल होना जरुरी है