कुछ अनुभव
हकलाना मेरी समस्या थी भी नही भी। कभी मै इससे पूरी तरह मुक्त था और कभी लगता कि ये मेरे पूरे जीवन की सच्चाई हो। मेरे मन के भीतर कही अन्दर बैठा था डर शब्दों का। लोगो के हंसने का अपने हकलाने से भी ज्यादा जो मुझे परेशान करता था वह भी लोगो की प्रतिकिरया। काफी बड़े होने तक भी मैने किसी दूसर को हकलाते नही देखा था।
मुझे लगता था कि सिर्फ मै ही हकलाता हूँ मगर इस क्षेत्र में आने से के बाद मुझे मालूम चला कि अकेला नही हूँ। मै रिसर्चर बन गया क्योंकि शायद इसमें बोलना कम पड़ता था मगर मुझे कभी - कभी चिन्ता होती थी कि क्या मेरा बच्चा भी हकलायेगा। अनस्पिकेबल के कुछ दृश्य सचमुच बदार्श्त के बाहर है क्योंकि इन दृश्यों में बड़ी ईमानदारी से उन जटिल संघषों को दिखाया गया है जो हकलाने वाले बच्चे प्रति दिन झेलते है मै पीछे मुड़कर देखता हूँ अपने जीवन को, क्या हकलाना मेरे जीवन के लिये एक अभिशाप था ,अब लगता है नही यह एक संघर्ष था और एक अवसर भी जिसने मेरे जीवन को एक नई गहराई व समझ दी ,मुझे कोई अफ़सोस नही है। कक्षा में मैं सदैव गलत जबाब दिया करता था क्योंकि सही जबाब पर अटक जाने से बेहतर था गलत जबाब दे डालना ''शब्दों के बोलने के पहले ही न बोल पाने का डर मन में आ जाता था मै हमेशा यही सोचता था कि मै न हकलाउ ,सही बोलू यदि अटक गया तो मेरी बदनामी होगी ,पर हकीकत यह थी कि मै जीतना अच्छा बोलना चाहता ,उतना अधिक हकलाता और जितना दूर भागता ,उतना अधिक पास आता। मै सोचता था कि सामने वाले को पता ही नही है कि मै हकलाता हूँ और मै अधिक छुपता था पर हकीकत यह थी कि कभी नही पाया। हर पल, हर शब्द, हर बात, हर व्यक्ति मेरे लिये एक संघर्ष होता था। सोचता सामने वाले को पता नही है कि मै हकलाता हूँ, पर सच्चाई यह थी उसे पता था। वह कहता इसलिये नही था मुझे बुरा न लगे।
मुझे लगता था कि सिर्फ मै ही हकलाता हूँ मगर इस क्षेत्र में आने से के बाद मुझे मालूम चला कि अकेला नही हूँ। मै रिसर्चर बन गया क्योंकि शायद इसमें बोलना कम पड़ता था मगर मुझे कभी - कभी चिन्ता होती थी कि क्या मेरा बच्चा भी हकलायेगा। अनस्पिकेबल के कुछ दृश्य सचमुच बदार्श्त के बाहर है क्योंकि इन दृश्यों में बड़ी ईमानदारी से उन जटिल संघषों को दिखाया गया है जो हकलाने वाले बच्चे प्रति दिन झेलते है मै पीछे मुड़कर देखता हूँ अपने जीवन को, क्या हकलाना मेरे जीवन के लिये एक अभिशाप था ,अब लगता है नही यह एक संघर्ष था और एक अवसर भी जिसने मेरे जीवन को एक नई गहराई व समझ दी ,मुझे कोई अफ़सोस नही है। कक्षा में मैं सदैव गलत जबाब दिया करता था क्योंकि सही जबाब पर अटक जाने से बेहतर था गलत जबाब दे डालना ''शब्दों के बोलने के पहले ही न बोल पाने का डर मन में आ जाता था मै हमेशा यही सोचता था कि मै न हकलाउ ,सही बोलू यदि अटक गया तो मेरी बदनामी होगी ,पर हकीकत यह थी कि मै जीतना अच्छा बोलना चाहता ,उतना अधिक हकलाता और जितना दूर भागता ,उतना अधिक पास आता। मै सोचता था कि सामने वाले को पता ही नही है कि मै हकलाता हूँ और मै अधिक छुपता था पर हकीकत यह थी कि कभी नही पाया। हर पल, हर शब्द, हर बात, हर व्यक्ति मेरे लिये एक संघर्ष होता था। सोचता सामने वाले को पता नही है कि मै हकलाता हूँ, पर सच्चाई यह थी उसे पता था। वह कहता इसलिये नही था मुझे बुरा न लगे।
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