कुल पेज दृश्य

बुधवार, 23 सितंबर 2015

हकलाहट Vs आप हकलाहट आपको मैनेज करती है ?

                                                          हकलाहट  Vs  आप                                  
                       हकलाहट आपको या आप हकलाहट को मैनेज करते हैं।  
दोस्तो मैन कई हकलाने वाले लोगों से बात किया,कई विश्वविद्यालयों के  थिसिस को पढ़ा जिसमें हकलाहट को रिसर्च किया गया है। तब मैंने पाया और स्वयं 35 वर्ष तक अनुभव भी किया कि अधिकतर लोगों को हकलाहट मैनेज करती है। जब हकलाहट का ब्लाकेज आता या आने वाला होता है, तब हम इतना नर्वस हो जाते  है ,कि हमें हकलाहट मैनेज करने लगती है। आइये कुछ          
उदाहरण देता हूँ।                            
1 . "पानी" शब्द  को अभी नहीं बोल पाओगे इसीलिए "एक गिलास पानी लाओ" वाक्य  को ऐसा  बोलो ऐसा "लाओ एक गिलास पानी" ऐसा इसलिए बोले क्योकि शायद  बोलते बोलते  आपको "पानी" शब्द बालने का विश्वास बन जाये और वाक्य किसी तरह पूरा हो जाएगा और हमारी हकलाहट का  ब्लाकेज किसी को पता नहीं चलेंगी। मैं छुपाने में सफल हो जाऊगा। यहाँ पर आपने देखा कि हमें हकलाहट कैसे मैनेज करती है।  और हम हकलाहट के गुलाम  कैसे बने है।                                                                                                                       2 . अब यदि हकलाहट कहती है कि-पानी शब्द अभी आप बोल सकते है, बाद में पता नहीं आप बोल पाओगे या नहीं। इसलिए अभी आप "पानी" बोलो तब हम "एक गिलास पानी लाओ" वाक्य को हकलाहट के डर के कारण "पानी लाओ एक गिलास" बोलते है। यहाँ पर पानी शब्द को पहले इसलिए बोल रहे है, क्योकि हकलाहट हमें यह कह दी है,कि अभी पानी बोल सकते हो बाद में ए शायद ना बोल पाओगे । इसलिए हम पानी शब्द को पहले ही  बोले  देते है। हम हकलाहट द्धारा इसलिए मैंनेज हो रहे है, क्योकि हमे लगता है. कि यदि हम पानी पहले बोल देंगे तो हमारी आवाज किसी तरह निकल जायेगी और  ब्लाकेज नही आयेगा। मैं हकलाहट को छुपाने में सफल हो जाऊगा। मेरी मजाक नही उड़ पाएगी, मै सुरक्षित हो जाऊगा। कभी कभी हम सफल भी हो जाते है। हकलाहट अपना हुकम चलाती है हम मानते रहते है। धीरे धीरे हम हकलाहट के पक्के गुलाम बन  है।
3 . अब यदि हकलाहट कहती है,कि आप पानी शब्द को आगे करो या पीछे बोल तो पक्का नहीं सकते, जैसे ही हकलाहट का यह आदेश हुआ वैसे ही आप तुरन्त पानी की जगह जल या वाटर जैसे शब्दों का यूज करके कहते हैं एक गिलास वाटर लाओ या एक गिलास जल लाओ। ऐसा बोलने से आपको काफी आराम मिलता है और आप सोचते है कैसे भी निकला ,निकला तो सही है।  ब्लाकेज नही आया। हमारी हँसी नही उड़ाई गई। मैं सफल हो गया। जबकी सच्चाई यह है कि जब भी दूसरी बार आपको पानी शब्द बोलना पड़ेगा तब आपका डर कहेगा तुम पिछली बार पानी की जगह जल या वाटर यूज किये थे। इस बार भी कर दो, वरना  पानी में अटक जाओगे।
मेरा मतलब बहुत साफ है,कि अक्षर या शब्द के पर्यायवाची शब्द बोलने से आपको क्षणिक फायदा भले ही नजर आता हो लेकिन ऐसा करने से आपकी समस्या और बढ़ रही है। कुछ दिन बाद आपके लिए वाटर और जल भी कठिन हो जाएंगे । पानी तो कठिन है ही । तब आप इशारे करके ही बोल पायेंगे। और आपके ब्लाकेज बढ़ेंगे। चेहरा बिगड़ेगा टेन्सन पैदा होगा और आँखे नही मिला पायेंगे। यहाँ पर मैंने पानी का उदाहरण लिया है ऐसे कई शब्द हैं जिसे आप हकलाहट की आज्ञा के अनुसार मैनेज करते है। मैनेज करने के कई तरीके भी अलग अलग हो सकते है जरूरी नही है कि मैंने जो उदाहरण दिए है वही आप करते हो। अलग अलग तरीके से आपको हकलाहट मैनेज  करते  है। और   आप तड़फते रहते है। इससे सिध्द होता है कि
                            "अब मैं सिखाऊगा कि आप हकलाहट को कैसे मैनेज कर सकते हैं ।
सबसे पहले स्वीकार्य कीजिए कि "मैं हकलाता हूँ "यह सही है कि यह कहना कि "मैं हकलाता हूँ" सरल काम नहीं है। लेकिन यदि स्टेप बाई स्टेप किया जाये तो विल्कुल सरल है। मैं आपको कुछ जानकारी देता हूँ। पेड़ जिसकी उचाई 20 फिट है उसे दूसरी जगह ले जाकर तैयार करना काफी कठिन ही नहीं वल्की असंभव है। लेकीन यदि 20 फीट ऊचे पेड़ का दाना ले जाकर दूसरी जगह जमीन में डाल दिया जाये और सही देख भाल की जाए तब कितना आसान है। यदि कोई कहे कि ट्रक पंचर हो गया है टायर फट गया है। २-४- लोग उठाओ कठिन है शायद असंभव भी है। लेकिन यदि जैक दे दे तो कितना आसान है। इसी प्रकार यहाँ भी है। प्रारंभ में आपको लग सकता है, कि सब कुछ गड़बड़ होने चाला है। प्रारंभ में बहुत सारे असभव है। मेरी कन्डीशन कुछ और है,  प्रारंभ में बहुत सारे लोग इस तरह बहाने करते  है।
आइये बताते है। ,
- सर मैं यह नहीं कर सकता ।
-सर मैं कालेज में हूँ।
- सर मैं वकील हूँ। इस प्रकार कैसे बोल सकता हूँ।
- सर मेरी परीक्षा है बाद में प्रारंभ करेंगे।
- सर मेरे भाई की शादी है बाद में आऊगा।                     
- सर मेरे पापा कि तबियत ठीक नही है मै बाद में आऊगा। इसी प्रकार लोग बोलते यह ऐसा क्यों बोलते हैं , क्योंकि हकलाहट मे मैनेजमेन्ट इतना स्ट्रॉग हैं, कि आपका मैनेजमेन्ट फैल हो रहा है। यदि आप अपना हुक्म चलाना चाहते हैं, तो आप अपनी हकलाहट कि प्रकृति को समझिए। स्वीकार्य कीजिए और अपने कन्ट्रोल में लीजिए और धीरे-धीरे मैनेज करना सीखिए। हकलाहट को आप मैनेज कीजिए हकलाहट आपको मैनेज न कर पाये। किसी ने कहा हैं,

                                आदतों को अपना गुलाम बनाओ। आदतो का स्वयं गुलाम मत बनें।।
 "हकलाहट पर विजय -----"दोस्तों आप हकलाहट में विजय तब प्रप्त कर सकते हैं, जब आप हकलाहट को खत्म करने का प्रयास करना छोड़ देंगे। हम जब रोड में गाड़ी ड्राइभ करते है तब ब्रेकर आते है। आप बताइये कि ब्रेकर को खत्म करना अर्थात खोद कर फेंकने का प्रयास करना उचित है। शायद आपका जवाब यही होगा कि ब्रेकर को पार करने कि कला सीखना उचित रहेगा। इसीलिए हम कहते है,कि  ब्रेकर का खत्म करने का ना तो प्रयास कीजिए और न ही सोचिए कि काश ब्रेकर नहीं आये यह तो आयेगा ही। हमें मात्र सीखना हैं ,कि जब ब्रेकर आये तब हम इसे पार कैसे करें। हम काफी लम्बे समय से प्रयास करते आ रहे है,कि हमारे ब्रेकर अर्थात ब्लाकेज न आये और यह बार बार आ ही जाते है। और हम बार बार फेल हो जाते है। और जब हम किसी कार्य में बार बार फेल होते है ,तब हमारे मन मे डर मैदा होने लगता हैं।
आइये मै कुछ ग्राउंड रुल आप को बताता हूँ। यदि आप इसको फालो करते हैं तो निशिचत ही आप ब्लाकेज को खत्म करना छोड़ देंगे और ब्लाकेज को पार करने का प्रयास करना सीखेंगे। हमें मात्र सीखना  है कि जब ब्रेकर आये तब हम इसे पार कैसे करें। हम काफी लम्बे समय से प्रयास करते आ रहे है ,कि हमारे ब्रेकर अर्थात ब्लाकेज न आये और यह बार बार आ ही जाते है। और हम बार बार फ़ैल हो जाते है और  जब हम बोलना चाहते हैं , तब हमारे मन में कुछ इस प्रकार के विचार आते हैं। मुझे जल्दी बोलना चाहिए क्योंकि यदि आराम से बोलूँगा तो सुनने वाला बोर हो जायेगा और उसके पास इतना समय नहीं होता कि, वह मेरी बात को सुने। इसलिए हमें तुरन्त ही जल्दी से जबाब देना चाहिए। दोस्तों आपने कभी सोचा हैं ,कि मैं ऐसा क्यों सोचता हूँ ?;विचार कीजिए। चोर सोचता है दुनिया में सब चोर है। मेरा मतलब साफ है। जब कोई आपसे बात करता है तब आप उसकी बात को विल्कुल नहीं सुनते हैं। और आप का ध्यान जबाब का प्रीब्यू देख कर कठिन अक्षर ढूढ़ने में रहता /है। अर्थात आप को लगता हैं ,जल्दी से यह व्यवित बोले आप विल्कुल ध्यान से नहीं सुनते हैं। इसीलिए आपको 100 %यह विश्वास हो गया हैं कि ,कोई व्यवित मेरी बात नही सुनता हमे जल्दी जल्दी अपनी बात बोलना चाहिए और आप 250 . 50 शब्द प्रति मिनट बोलने का प्रयास करते है। और हमेशा समय के दबाव में रहते है। मैं बताना चाहूँगा जो व्यवित जितनी बड़ी पोस्ट में होता हैं ,वह उतना अच्छा सुनने वाला होता है और धीरे -धीरे बोलने वाला होता है। उदाहरण अटलबिहारी बाजपेयी जी। आप लोग कहते है ,कि नही मेरी कण्डीशन कुछ और है। मेरा जॉब कुछ और हैं धीरे बोलने से मेरा काम नहीं होगा महोदय मैं बताना चाहूँगा अच्छा वक्ता वही होता हैं ,जो अपनी बात को बिना डर के विना उलट पलट के आँखे मिला कर सकें। जब आप बोलें तब समय का दवाव मन में विल्कुल नहीं आने दें। आप सोचें जब इसकी बात मैंने ध्यान से सुना हैं ,तब भी मेरी बात ध्यान से अवश्य सुनेगा। मैंने जब तक 500 से अधिक इंटरब्यू दिया होगा। किसी भी इंटरब्यू में यह नहीं कहा गया हैं ,कि जल्दी बोलों मेरे पास समय नही हैं। आपस ?;और जब मैं स्वीकार्य कर लिया कि हाँ मैं हकलाता हूँ। तब तो और सरल हों गया सामने वाला समझ गया यह हकलाता हैं। और वह मानसिक रूप से तैयार हो गया मेरी आवाज सुनने के लिए। जब दोनों लोग तैयार हो गये तब निश्चित रूप से वातचीत सफल होगी। वास्तव में होता यह हैं ,कि हम टाइम दबाब में आ जाते हैं। तब हमारी स्पीड बढ़ जाती है। स्पीड आर्गन विगड़ जाते हैं आँखे यहाँ वहाँ होने लगती है। और हम सही वर्तालाप नहीं कर पाते हैं। क्योंकि हम अपनी लड़ाई में उलझे हैं और सुनने वाला भी यही सोच रहा था ,कि यह आम व्यवित जैसे बोलेगा और आम व्यवित जैसे आप बोल नहीं रहे हैं। तो उसे भी आपकी आवाज सुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार होना पड़ेगा। यह तैयार है नहीं,और आप बोलना प्रारंभ कर दिये तब उसे लगता है, यह कैसे बोल रहा है। और वह पूरा प्रयास भी करता हैं ,लेकिन आप समय ही नहीं देते उसे। तब वह टेंशन हसीं के रूप में बाहर आता है। और आप समझते हैं ,कि यह मेरी हसीं। ........ तब उसे लगता है ,यह कैसे बोल रहा है। और वह पूरा प्रयास भी करता हैं ,लेकिन आप समय ही नही देते उसे। तब वह टेंशन हँसी के रूप में बाहर आता हैं। और समझते है ,कि यह मेरी हसीं। ......... 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें