9 . क्या आप जानना चाहते है ?
A- लोग क्यो हकलाते है ?
इसे महज एक बुरी आदत मानना गलत है सच्चाई यह है कि यह एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है,जिसमे कुछ ध्वनियों का उच्चारण न सिर्फ मुश्किल कई बार असंभव हों जाता है। जब मसितष्क से ध्वनि के लिये विहुत तरंगे नही पहुचती है तो हमारा कंठ पिछली ही ध्वनि को दोहराता रहता है कभी -कभी गला पूरी तरह ब्लाक हो जाता है ,न ही हवा बाहर निकलता और न ही ध्वनि। एक हकलाने वाले व्यवित के शब्दों में जैसे कि जबड़ा जुबान ,मुँह और कंठ सभी एक पल को जकड़ गये है ,परिणामस्वरूप व्यवित शब्दों को बाहर धकेलने के लिये एक संघर्ष शुरु कर देता है। यह संघर्ष प्रायः चेहरे सिर व बदन में दिखाई पड़ता है जैसे आँखो का झपकना ,चेहरे का एकतरफ ऐठ जाना ,सिर व हाथों का हिलाना ,पाँव पटकना आदि। शुरू में हमने सम्भवतः इन व्यवहारों का प्रयोग था ब्लाकेज से बासर समस्याओं को देती है। मसितष्क के स्केंन द्धारा अध्ययन से पता चला है कि एक हकलाने और एक सामान्य व्यवित जब चुप रहते है, तो उनके में कोई अंतर नही होता लेकिन जब हकलाने वाले बोलने लगते है तो उनकी बाया मसितष्क भय चिंता व अन्य भावनाओं से जुड़ा होता है। कुछ वर्षा पहले तक यह माना जाता था कि बोलने की प्रतिकिर्या पर नियंत्रण करने के लिये दाए व बाए मसितष्क पर संघर्ष होता है जिसके करण हकलाने वाले अटकते है पर अब यह माना जाता है कि दाए मसितष्क का सकिर्य हो जाना हकलाने का कारण नही है बलिक संभवतः उसका परिणाम है। से जुडी तमाम नकारात्मक भावनाएॅ जैसे डर ,शर्म ,आदि बोलने के क्षणों में एक एक सकिय हो जाती है और स्केन के दौरान दाए मसितष्क की हरकत के रूप में दिखाई पड़ती है। हम बोलते समय अपने शब्दों को जैसे डर हम बोलते समय अपने शब्दों को जैसे सुनते है और गले और मुँह की मांसपेशियों को करते हुये जैसा महसूस करते है ,इन दोनो के बीच में तालमेल मसितष्क का एक विशेष आग बैठता है जिसे सेन्ट्रल ऑडिटरी पोर्सेसिंग एरिया कहते है। यह अंग हकलाने के दौरान निषिक्रय हो जाता है। अन्य शब्दों मे अपने शब्दों को चुनना और उसके अनुसार उच्चारण की विभिन्न मांस शेश्यो का तालमेल बैठाना गड़बड़ा जाता है। कुछ बैज्ञानिक बेसल गैगलिया (काडेट न्युबिलयस )में डोपामिन की अधिक्ता को एक कारण मानते है। मसितष्क का यह अंग हमारे विचारेको ध्वनि में बदलने के लिये उपयोग किया जाता है।
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