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सोमवार, 21 सितंबर 2015

स्वीकार्य करना कठिन

                                                                स्वीकार्य   करना कठिन।
यह सच है कि हकलाने वालो के लिए यह कहना कि "मैं हकलाता हूँ "यह आसपास से तारे तोड़ने जैसा ही है। हकलाने वाले सब करने को तैयार होते है। पर स्वीकार्य करने में तैयार नहीं होते हैं। उनको संका रहती हैं कि यदि मैं कह दिया कि मैं हकलाता हूँ ,तो मेरे दोस्त मेरी हँसी उड़ाएगे मेरी नौकरी छूट जाएगी ,मेरी शादी नही होगी ,मेरा सलेक्श्न नहीं होगा ,मैं बरबाद हो जाउंगा। इसी प्रकार सोचते है। हकलाने वाले अधिकतर व्यवित उस दवाई की खोज में रहते हैं ,जिसे खा कर जल्दी ठीक हो सकें। किसी को पता भी नही चल सके। और बहुत से लोग पूरी जिन्दगी दवाई खोजते हैं और अधिकतर व्यवित उस दवाई की खोज में रहते हैं जिसे खा कर जल्दी ठीक हो सके। और बहुत से लोग पूरी जिन्दगी दवाई खोजते है और जिन्दगी में  दवाई नही मिलती। सच्चाई यह है जब तक आप दवाई खोजते रहेंगे तब तक हकलाहट आपको परेशान करती रहेगी। जिस दिन आप दवाई खोजना बंद कर देंगे उसी दिन आप हकलाहट पर विजय प्राप्त कर लेंगे।  एक मेरे मित्र हकलाहट से पीड़ित थे। उन्होंने कहा वीं ,के ,सिंह आप लोगों की सोच नही बदल पायेगे आप भगवान नहीं हैं।  यदि लोग अपनी सोच बदल लेते तो एक डाक्टर का लड़का कैन्सर से नहीं मरता ,एक प्रिन्सिपल का लड़का अनपढ़ नहीं रहता ,एक पुलिस वाले का लड़का चोर नहीं होता मैंने कहा ये सच है मेरे मित्र कि मैं लोगों कि किस्मत और सोच नही बदल सकता लेकिन किस्मत और सोच बदलने कि तरकीब यानी तरीका अवश्य बता सकता हूँ।      
   "ये सच है कोई किसी तकदीर नही बदल सकता। पर ये भी सच है कि ,कोई तकदीर बदलने की तरकीब जरूर बता सकता है। "
 जब लोगों को चोरी करने में ,बुखार आने में, चोट लगने में फून करने में शर्म नहीं आती तो हमें यह कहने में , शर्म बिल्कुल नहीं आती कि मैं हकलाता हूँ। 
     स्वीकार्य करना हकलाहट पर विजय प्राप्त करने की पहली सीढ़ी हैं "
एक हकलाने वाला  व्यवित ने कहा सर मेरे समझ में नही आया यह कैसे संभव हैं !मैंने बहुत समझाया पर बार बार वह यही कहता था।  सर कोई दवाई या सरल तरीका बताइये।  जिससे हकलाहट ठीक हो जाये मैंने कहा मित्र एक बात बताओ तुम्हारे यहाँ भैंस है उसने कहा हा हा है। मैंने कहा एक बात बताओ भैस हरी घास खाकर सफेद दूध कैसे देती है। तब उसने कहा यह तो प्राकृति का नियम है। तब मैंने कहा यही तो मैं तुमको एक घंटे से समझा रहा हूँ। यह प्राकृति का नियम है। की स्वीकार्य करने के बाद हकलाहट का डर कंट्रोल होने लगता है। तब यह बोला नही सर मेरी नौकरी चली जाएगी और लोग हमें जीने नहीं देंगे मैं इजीनियर यह नही कह सकता। मैंने कहा एक बात बताओ इजीनियर साहब आप हकलाहट को 25 वर्षो से छिपा रहे है कितनी बार छिपा पाये है। आपके ब्लाकेज बहुत ज्यादा है। यह छुप ही नही सकते !तब उन्होंने कहा नही मैं छुपा लेता हूँ। मैंने कहा हकीकत यह हैं कि जो व्यवित आपसे 1 - 2 बार मिल लेता है।  वह यह जानता है कि आप हकलाते हैं। हकीकत यह है। लेकिन यह कहता इसलिए नही है कि आपको बुरा लग जाएगा और आप जीवन भर यही समझते हैं कि इसे पता ही नही है कि मैं हकलाता हूँ। और आप जीवन भर छुपाने के टेन्सन से लड़ते रहते हैं। हारते रहते है , हारते रहते है ,रोते रहते हैं ,अपने आपको कभी -कभी गाली भी देते रहते है। यदि आपको ये सब करते रहना अच्छा लगता है तो हमारी शुभकामनाऍ आपके साथ है। लेकिन मेरे मित्रो यदि आपको ये सब करना बेकार लगता है और आप इसमे मुवित चाहते हो तो मेरी बात मानो स्वीकार्य करो और. खड़े हो जाओ।
" असफलता एक चुनौती है स्वीकार्य करो देखो क्या कमी रह गई है और सुधार करो। जब तक सफल न हो नींद चैन को त्यागो तुम संघर्षो का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ! कुछ किये बिना ही जै जै कार नहीं होती। कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती।"

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