हकलाने से व्यक्ति के जीवन में क्या असर पड़ता है ? युवा व्यकितयों के लिये हकलाहट एक आम समस्या है। परीक्षाओ और नौकरियों के लिये होने वाले साक्षात्कार में बोलने का तनाव बढ़ जाता है अतः साक्षात्कारकर्ता व परीक्षक प्रायः इन मुशिक्लो को आत्मविश्वास व ज्ञान के अभाव ,घबराहट व संप्रेषण की एक स्थाई समस्या के रूप में देखने है। वे प्रायः यह नही समझ पाते कि जो व्यवित साक्षात्कार के रूप में हकला रहा है ,वह नौकरी में बहुत कम ही या न के बराबर हकलायेगा और अपना सारा सुचारु रूप से कर लेगा। इसके अतिरिक्त हकलाने वाले व्यवित प्रायः अपनी अंदरुनी विचारों को व्यक्त करने में रुकावटे महसुस करते है ,विशेषकर प्रेम व अन्त निकट संबंधो में। चुकि उदन्त भावनाऍ जैसे क्रोध व अन्य उतेजनाऍ बोलने की प्रक्रिया को कही ज्यादा प्रभावित करती है अतः इन भावनाओं की अभिव्यवित हकलाने वालो के लिये बहुत ही कठिन होती है प्रातः ऐसी भावनाऍ वे अपने अन्तर्मन में गहराई से दबा लेते है,इस,इस वजह से मन में कुंठा,हीन भावना और गहरे असंतोष छुपे हो सकते है बगैर हमारे जाने के भाव,हमारी समाज व अपने प्रति सोच व समझ को प्रभावित करते है। यहाँ तक कि कई बार हमारे पेशे व रुचियों का चयन और हमारे मानवीय संबंध भी इन गहरी भावनाओं से प्रभावित होते है। जैसे -जैसे हकलाने वालों की उम्र ,समझ और अंतर्दृष्ट बढ़ती है,वे अपने आप को और अपनी हकलाहट को और अधिक महसूस करने लगते है। Click here
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