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बुधवार, 16 सितंबर 2015

हकलाना क्या है

                                                          हकलाना क्या है 
 आपका आत्मा विश्वास तो कहता है कि हमारी सबसे बड़ी बोलने की कमजोरी तो हकलाहट है , लेकिन आपका मन ठीक बोलने को कहता है। आपके आत्मविश्वास और ठीक बोलने को ,कहने वाले मन के बीच झगङा या टकराव का होना ,अच्छा बोलने की कोशिश करना ,न अटकने की सोचना,  ही हकलाहट है। हकलाना जन्म से नही होता है ,बल्कि बचपन में किसी कारण से बच्चे का Respiration System कमजोर होने से इसकी शुरुआत होती है, और फेफड़ो (Lung )के बीच गैप कम हो जाता है इसीलिये बच्चे की External Respiration कमजोर हो जाती है , और बच्चा अटक -अटककर बोलने लगता है। बच्चा रुककर नही बोलना चाहता है। असलियत का उसे ज्ञान नही ,वह अटक -अटककर बोलने के । बजाए कमजोर Respiration System होते  हुए भी ज्यादा बोलने लगता है। ज्यादा बोलने से बच्चे की स्पीड बढ़ जाती है ,और स्पीच बढ़ने की वजह से ही अटकने लगता है। इस अटकने को ही हकलाना कहते है। 
धमिर्क एवं पौराणिक ग्रंथों में हकलाहट को गदगद कहा गया है। वास्तव में हकलाना जीभ या मुँह में नही बलिक दिमाग में होता है। हकलाना निम्न प्रकार का होता है। 
1 अक्षक लोप (Elision )
2 ध्वनी परिवर्तन (Lisping )
3 अस्पष्ट उच्चारण (Slurring )
4 बोलते -बोलने का आत्मविश्वास टूट जाना (Stuttering )  क्लिक  
                                                  लोग क्यो हकलाते है ?
यह एक अनसुलझी गुत्थी है। भारत में कोई एक करोड़ लोग (यानि एक प्रतिशत )इस समस्या के साथ जी रहे है इनमे  महिला व पुरुषों के बीच एक व चार का अनुपात पाया गया है। बचपन  में यह पांच से सोलह प्रतिशत  लोगो लो प्रभावित करता है  कोई भी समुदय ,वर्ग ,जाति या क्षेत्र इससे अछूता नही मगर इस स्वास्थ्य समस्या के कई पहलू काफी विचित्र है जैसे -चिकित्सा विज्ञान में अभूतपूर्व तरक्की के बावजूद इस वाणी विकार के लिये जिम्मेदार कोई भी कारण निशिचत रूप से अभी तक नही ढूढा जा सका हैं। बहुत से कारणो को सम्मिलित रूप से प्रतिपादित किया है -अनुवांशिक ,बचपन में बोलने से जुङे अनुभव ,बचपन का वातावरण ,कुछ बच्चो में दिमाग में भिन्न किस्म की तंत्रिकाओं का होना (न्यूरोफिजियोलॉजिकल कारक )आदि। दूसरी बात ,यह समस्या विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकती है। इसकी कोई निषिचत छवि या सीमा है। पी ,डब्ल्यू ,एस ,(पीपल हू स्टेमर यानि हकलाने वाले व्यवित  एक क्षण बोलने में बिलकुल लाचार और दूसरे ही क्षण सामान्य ढ़ग से बात करता मिल सकता है कुछ व्यवित बाहर से शान्त मगर अन्दर शब्दो से संचर्ष करते रहते है जबकि कुछ अन्य स्पष्ट रूप से शब्दों से जूझते सुनाई और दिखाई पड़ते है। कुछ क्षण पश्चात वे संभवतं  वही शब्द बड़े आराम से कह पाये। कुछ ऐसे व्यवित फोन पर बात करना बेहद कठिन पाते है जबकि अन्य शायद रेस्तराँ में आर्डर देना या बस में गन्तव्य का नाम बताकर टिकट लेना कही ज्यादा कठिन पाते है। तीसरे ,पी ,डब्ल्यू एस की स्वयं के हकलाने के प्रति प्रतिकिर्या व दृष्टिकोण। कुछ हकलाने वाले व्यवित अपनी समस्या को सदैव छिपाने में प्रयासरत रहते है। असफलता ,कुंठा व हीन भावना से जूझते रहते है। समस्या से बचना (अवाडेन्स )उनकी सोच व चरित्र का बन जाता है।जहां अन्य रोगों सामाजिक बातचीत के दायरे में देखा जाता है ,वही इस समस्या पर बात करता वे बेह्य कठिन पाते है। चूँकि यह समस्या एकसार बनी रहने के बजाय आती -जाती रहती है इसीलिये इसे झुपाना संभव होता है व्यवित खुलकर इसे कभी स्वीकार नही कर पाते। चौथे ,सामाजिक प्रतिक्रिया किसी को हकलाने सुन कुछ लोग बेचैन ,परेशान या हैरान  हो जाते है और यह सब उनकी भाव भंगिमा में जाने -अनजाने प्रकट हो जाता है। कुछ अन्य लोग इनकी नकल उतारते या मजाक बनाने लगते है। ये सभी प्रति किर्याऍ हकलाने वाले व्यवित की समस्याएबढाती है बहुत कम ही लोग इस बात को समझ पाते है कि यह मिगी जैसी अस्थाई प्रकिर्या है जो उस क्षण ,उस व्यवित के वश में नही है। कुछ लोग हकलाना इतना अरुचिकर पाते है वे ऐसे व्यवित्यों  को काम पर भी रखना पसन्द न करेंगे।  पाँचवे ,शायद ही अन्य किसी रोग में इतने बोगस इलाज देखने को मिलते हो जितना हकलाने के लिये। जुबान को विशेष सांप से कटवाना ,जुबान के रखने के लिये विशेष पत्थर ,जादुई जड़ी -बूटी ,टंग टाई (जुबान की जडं का )आपरेशन आदि। आधुनिक वाणी चिकित्सा (स्पीच थैरेपी )ऐसे चमत्कारिक उपायो से कही ज्यदा कारगर है ,केवल स्पीच थैरेपी से हकलाना क़ाबू नही होता ,इसके लिये साइकोथैरेपी ,सपोटर ग्रुप ,medication ,meditation की भी आवश्यकता होती है।      क्लिक                                                                                                                   

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