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सोमवार, 21 सितंबर 2015

स्वीकार्य करने के कुछ नियम

 मैं आपको स्वीकार्य करने के कुछ नियम बता रहा हूँ
 1 . पहले आप अकेले मेँ कहना सीखिए कि मैं हकलाता हूँ। 1 - 2 बार कहने से काम नही चलेगा। हमेशा लगातार जब तक आप अच्छा फील नहीं करते हैं। तब तक यह कहते रहे , दिमाग को संदेश देते रहें कि मैं हकलाता हूँ। यहाँ पर एक निगेटिव एनर्जी आपके दिमाग में बनेगी और आप से कहेगी यह क्या बेवकूफी कर रहे हो ऐसा कभी नही होगा। यह संभव नही !यह कहना छोड़ दो आप इस निगेटिभ इनर्जी की विल्कुल न माने और लगातार यह कहते रहें कि मैं हकलाता हूँ। धीरे -धीरे यह निगेटिव इनर्जी बनना बंद हो जाएगी और आपको यह यह कहने में जरा भी संकोच नही होगा कि मैं हकलाता हूँ।
2 . जब यह संकोच खत्म हो जाय तब आप पेड़ो से , देवताओं के सामने ,गाय ,भैंस , बकरी ,दीवाल से कहें
3 . इसके बाद आप धीरे -धीरे अपने घर में पापा मम्मी या छोटे भाई बहन से आप बीच बीच में सहज भाव से कहें मैं हकलाता हूँ। मैं फिर बोलना चाहूँगा कि यह एक दो दिन का काम नही है लगातार कहते रहे। इससे आपको अंदर खुलापन आएगा और सारा दिन रटना नहीं हैं और न ही चिल्ला चिल्ला कर कहना है। दिन में दो तीन बार सरल सहज भाव से जैसे आप कहते हैं मैं प्यासा हूँ ,पानी लाओ। मैं  भूखा हूँ, खानालाओ। इस प्रकार बिल्कुल सरल भाव से कहें मैं हकलाता हूँ। यहाँ पर एक बात बताना और जरूरी हैं ,कि केवल मैं हकलाता हूँ। कहने से काम नही चलेगा बलिक थोड़ा हकलाना भी है। जानबूझ कर करें। इसे Voluntary stammering "मैं हकलाता हूँ। "ऐसा बोलें मैं मैं मैं हकलाता हू। यहाँ पर यह बात ध्यान में रखिए कि जब आप हकलाते हैं ,तब आपकी आवाज आपके कन्ट्रोल मे नही होती है। लेकिन जब आप स्वीकार्य करें तब सहज सरल भाव से स्पीड स्पीच ऑर्गन को कन्ट्रोल करके कहे मैं मैं मैं हकलाता हूँ।  voluntary stammering के बारे में आगे विस्तार से बताया जायेगा।
4 . जब आप अपने आप से ,घर मेँ ,छोटे बच्चो से बिना झिझक शर्म संकेज आत्मग्लानी के यह कहने मे सक्षम हो जाये कि मैं मैं मैं ह ह ह हकलाता हूँ। तब आप अपने अच्छे मित्रो से भी कहना प्रारंभ कीजिए। और बीच -बीच में voluntary stammering करते रहें। जैसे में मेरा नाम सू सू सूरज हैं। आ आपका ना नाम क्या क्या हैं। यह आपको थोड़ा मुशिकल और निगेटिव फील हो सकता हैं। लेकिन करते रहें अवश्य जीत आपकी होगी।                Acceptance के फायदे       जब आप किसी से कहते हैं, कि मैं हकलाता हूँ। तो आपका मन कहता है। अब मैं क्यो छुपाऊ !अब तो इसे पता चल ही गया हैं। कि मै हकलाता हूँ।
 जब कभी आप दूसरी बार उस व्यवित से मिलते हैं जिसके सामने आपने कहा था कि मैं  हकलाता हूँ। तब आपका मन कहेगा पिछली बार मैं इनसे कहा था कि मैं हकलाता हूँ। इन्हें अवश्य याद होगा अब मैं क्या छुपाऊ। चाहे वे भूल ही क्यो न गये हों।
5 . हमारे शरीर में कार्य करने कि बहुत सारी एनर्जी होती है और हम शब्दों को बदलने ,शब्द को आगे पीछे करने छुपाने में खर्च कर देते हैं और अन्य कार्यो में पीछे रह जाते हैं। स्वीकार्य करने से आपकी एनर्जी बेकार खर्च नही होती। और आप हर काम मे सफल होने के लिए तैयार रहते हैं। 4 . स्वीकार्य करने के बाद टेन्शन कोध हीन भावना में कमी आती हैं। और
  पिंजड़े मे बन्द तोता उड़ने के लिए तैयार                                                                    

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