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रविवार, 5 मई 2019

practical

 बोध कथा स्वीकार्यता का एक दूसरा पहल ;कुछ लोग कहते है ;मैंने हकलाने को स्वीकार [एक्सेप्ट ]कर लिया अब मुझे और क्या करना है कुछ नहीं पर सच तो यह है कि शब्दो में स्वीकार करना सिर्फ पहली सीढ़ी है असली सफर इसके बाद शुरू होता है यह बोध कथा यही समझाती है                                                                           एक बार         एक आदमी लॉटरी जीत कर रातोरात बेहद अमीर बन गया उसके मन में पहली बात आई ,मै नौकरी कियु करू मै तो दुसरो को नौकरी दे सकता हु उसने इस्तीफ़ा दे दिया दूसरे दिन उसके मन में आया इतनी सुबह कियु उठ रहा हु कौन सा ऑफिस पहुंचना है कुछ दिन बाद उसे लगा की दाढ़ी बनाना बेकार है क्योंकि उसे कौन सा बॉस से मिलना है 

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