स्वयं सहायता क्यों
पिछले आठ वर्ष में टीसा से ज्यादातर लोगों ने बताया कि स्पीच थैरेपी से उन्हें सिर्फ कुछ दिनों या हफ़्तो का लाभ मिला कुछ समय बाद उनका हकलाना फिर से लौट आया इससे हमें दो बातें समझ में आती हैं ; एक -जैसे मलेरिया या बोकाइटिस का क्योर [इलाज] सम्भव है , वैसा स्टेमरिंग में नही दूसरी बात -हकलाने में काफी लम्बे समय तक मदद की जरूरत पड़ती है और इसी लिय जरूरत है कि हम अपने स्पीच खुद बनें दूसरा कब तक हमारी मदद करेगा और करे भी तो लम्बे समय तक उसकी .फीस कितने दे पायंगे यानी अगर आप अगले एक साल तक, बाइक पर भारत भमण की योजना बना रहे है तो स्पार्क प्लग साफ़ करना भी सीख ले और पंचर लगाना भी' क्योंकि तभी तो सफ़र का मज़ा आएगा।
यहाँ एक अहम सवाल यह है कि क्या आप अपनी मदद खुद कर सकते है टीसा का अनुभव यह है कि ज्यादातर हकलाने वाले, भारत में अपने ही प्यासों से ,ठीक हुए है। अधिकतर तो कभी किसी थेरेपिस्ट के पास गए नही। थोड़े से जो गए , ही महीनो में सिखाई गई तकनीक का प्रयोग बंद कर चुके थे और अपने स्तर पर हाथ -पांव मार रहे थे या कुछ नया तलाश रहे थे। इनमें से ज्यादातर थैरेपी की असफलता के लिए खुद को ही जिम्मेदार मान कर अंदर निराश हो चुके थे; फलां व्यकित तो क्योर हो गया मगर में क्यों नही। शायद मैने मेहनत नही की; शायद में अभागा हूँ आदि।
कम ही थेरेपिस्ट इस मुददे को खुल कर समझाते है कि हकलाने की असली वजह कोई नहीं जानता और इस लिए क्योर भी किसी के पास नहीं हे, और जिसे लोग क्योर समझ रहे हैं वह सिर्फ कंट्राल या मैनेजमेंट है -या सिर्फ बहुत ही बिरलों में स्पॉनटेनियस रिकवरी [जड़ से ठीक ]; जिसे न तो कोई समझता है और न ही किसी दूसरे को दे सकता है। जैसे कभी -कभी कैंसर के ऐसे रोगी जिन्हें डॉक्टर जवाब दे चुके हैं, अपने आप ही ठीक होने लगते हैं - क्यों कोई नहीं जानता। मगर ऐसे मामले बेहद कम हैं।
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