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गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

स्वयं चिकित्सा को प्रभावित करने वाले कारक

   Factors affecting self therapy   स्वयं चिकित्सा को प्रभावित करने वाले कारक ; 
- 1 . हकलाहट की समस्या के लिए स्वयं चिकित्सा से पहले हमें यहाँ पर कुछ कारकों के बारे में चर्चा कर लेनी चाहिए। ये कारक स्वयं चिकित्सा के प्रति हमारे व्यवहार को निधार्रित करते है।  आप इन कारकों पर काम कर सकते है।  2 . ये सभी कारक चिकित्सा से सम्बनिधत वे सभी जानकारी प्रदान करते हैं ,जो चिकित्सा की प्रगति में योगदान करते है।
 ये कारक निम्नलिखित हैं ; - click  here 
 1 भावना और मनोभाव।                
 2 तनाव और शिथिलता ( आराम पहुचाना )
 3 ध्यान हटाना
 4 किसी से सहयोग प्राप्त करना
 6 आपका संकल्प या प्रोत्साहन 
  1  भावना और मनोभाव ; - हकलाना कोई आसान वाणी  दोस नहीं है।  यह एक गम्भीर गड़बड़ी है। जिसके दोनो है शारीरिक पहलू और मानसिक समझाने के लिए यह कह सकते है, कि एक हकलाने वाला व्यवित्त हकलाहट को रोकने का जितना अधिक प्रयत्न करता है वह उतना ही अधिक हकलाता है। दूसरे शब्दों में कहे तो यह खुद के व्दारा बुना गया जाल है।  होता यह है ,कि जितना अच्छा बोलने का प्रयत्न करते है उतना ही अधिक आप अपने बोलने के अंगों पर तनाव डालते है। उतनी समस्या खड़ी करते है।इस बोलने की मशीन के कलपुर्जे बहुत ही  नाजुकता के साथ सामंजस्य में होते है। इसलिए जितना हम हकलाहट को रोकने का प्रयत्न करते हैं उतना ही अधिक हकलाते है।  हकलाने के कारण आप शर्म महसूस करने, हीनभावना से ग्रसित और खुद से नफरत  करने लग जाते हैं।  आपके यही मनोभाव धीरे धीरे आपके मन में चिंता और डर पैदा कर देती है जो आपको जीवन में आगे बढ़ने से रोकती है                                                                                                                                                                      यदि आप अपने आपको शर्म के प्रति उदाशीन बना ले तो आप बोलने के ढ़ग को बदल सकते हैं। एक व्यवित का कथन हैं ,कि जितना आप हकलाहट को बर्दाश्त नही कर सकते उतना ही हकलाएगे।
 2  तनाव और शिथिलता ;-चुकि डर हमारे अंदर काफी अधिक तनाव पैदा कर देता है , तनाव को कम करना ही चिकित्सा का मुख्य उदेश्य होना चाहिए।  डर व्दारा उत्पन्न तनाव का हकलाने से गहरा संबंध है।  अगर आप बिना कठिनाई के बोलने का प्रयत्न नहीं करेंगे तो उतना ही कम आप हकलायेंगे। तनाव को कम करने के लिए हम कई तरीके अपनाते हैं जैसे
 1  मादक वस्तुओं का प्रयोग जैसे ' शराब आदि। परन्तु इससे कोई पूर्ण लाभ नहीं मिलता                                  2 . कई दवाये भी आती है ,जो डर और चिन्ता को कम करती है।  परन्तु इनके कई दुष्परिणाम भी होते है।  
3 , इसकी सलाह भी दी जाती है , कि योग तनाव को कम करने में सहायक है। मन को शान्त करने की तकनीक सीखना आपके बोलने के लिए अच्छा है। जितना ज्यादा आप तनावमुक्त और शान्त रहेंगे उतना ही कम हकलाऐगे।  इसके लिए आपको ऐसे व्यायाम करने चाहिए जो आपको अपने ओठों ,जीभ , मुँह , स्वांश और कुछ हद तक को नियनित्रत करने में सहायता करती है।  यह सलाह दी जाती है ,कि व्यवित को हमेशा योगा करना चाहिए क्योंकि यह उसके आत्म विश्वास को बढ़ाता हैं , जिसकी सभी हकलाने वालों को आवश्यकता हैं। हमेशा अपने आप को कहते रहें कि आप आपकी समस्या पर पूरी तरह नियन्त्रण पा लेंगे।                
3  . ध्यान हटाना ;- यदि ऐसा कोई रास्ता हो ,कि आपका ध्यान डर से हट जाए तो आप बिल्कुन नहीं हकलाते है।
 4  . किसी से सहयोग प्राप्त करना ;- यह बहुत ही अच्छी बात आपके लिए होगी की आप किसी स्पीच लैंग्वेज डॉकटर जिसने हकलाहट के समबन्ध में काम किया हैं ,से सहायता प्राप्त कर सके।  लेकिन स्वयं चिकित्सा इस प्रकार संयोजित की गयी हैं ,कि आप किसी की सहायता के बिना अपना इलाज कर सकें। यदि आपके पास यहयता हो तो भी चिकित्सा की सफलता अधिक से अधिक आपके प्रयासों पर ही निर्भर करती है।  आप चिकित्सक के अलावा कई लोगों की सहायता ले सकते हैं ;- जैसे  ( 1 ) परिवर के सदस्य ( 2 ) कोई दोस्त ( गहरा ) वह आपकी हर मोड़ पर गलतियों और सफलताओं के बारे में बताता रहेगा।
5 - आपका संकल्प ;- तुरन्त ही धारा प्रवाह में बोलने लगने का कोई आसान रास्ता नही है।  आपका दृढ संकल्प ही आपको हकलाने की समस्या से लड़ने में सहायता करेगा।  और यह भी हो सकता है इलाज की शुरुआत में आपको बहुत ही शर्म का सामना करना पड़े।  आसान शब्दों में कहें तो इलाज के दौरान जो शर्म आप महसूस करते हैं ,वह आपकी संवेदनशीलता को कम करता है।  जो कि आपके हकलाने का मुख्य कारण है। अपने आप पर हमेशा विश्वास रखें।  यहाँ पर मैं बहुत अच्छे तरीके से बोलने के बजाय ,बहुत ही आसानी से बोलने पर जोर डालूँगा।  हमें अपना लक्ष्य अपनी आवाज को अधिक से अधिक अपने नियंत्रण में रखने का प्रयास करना चाहिए।      क्लिक                       

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